संस्मरण

वो शाम हंसीं

कोई सपना पूरा हो रहा है। यह बात कुछ साल पहले की है जब हमारा 20 सालों बाद स्कूल के सभी दोस्तों के साथ रियूनियन हुआ। सहसा पुराने सारे जज्बात हरे भरे हो गए। वो स्कूल के दिन याद आ गए, जब हम बाल्यावस्था से किशोरावस्था और यौवन की दहलीज पर पांव रखे थे। पढ़ाई के साथ रंगीन यादें भी जुड़ रही थी। बोर्ड के पहले फेरवेल दिया गया इस वक्त किसी ने एक छोटी सी कागज पर कुछ लिखकर फेंका। उसमें लिखा था तुम मुझे बहुत याद आओगी। पता नहीं किसने लिखा हमने मुड़कर के काफी देखा लेकिन कोई नजर नहीं आया। हमारी दो अंतरंग सखियां थी उन्होंने भी काफी कोशिश की पता लगाने में लेकिन पता नहीं चला।
खैर रियूनियन का दिन आया और वह पर्ची वाली बात सहसा से दिमाग में कौंध गई। 20 सालों बाद सभी को देखकर जो अनुभूति हुई वह शब्दों में नहीं पिरो सकती।सारे पुराने याद रंगीन हो गए कसक वही पुरानी थी किंतु जज्बात हरे भरे। हम भूल चुके कितना वक्त बीत चुका था कौन क्या-क्या बन चुका है। ऐसे सुनहरे पल बहुत कम आते हैं।सहसा किसी ने बीच में कहा आज वह वक्त है जो एक बात मैंने छुपाई थी, आज उन्हें देखकर वही बात ताजी हो गई। किसी को भूलना हमारी फितरत नहीं और आज बताने की मोहलत यही है सही। फिर उसने बताई वह कागज की पर्ची वाली बात, उस समय उसके हरे भरे हुए थे जज्बात और उसने फेंका था मेरे गोद में कागज का पर्ची। उसने खुलेआम कहा हां मैं वही शख्स हूं जिसने फेयरवेल के दिन एक पर्ची किसी की गोद में फेंकी थी। उसकी नजरें मुझको ढुंढ रही थी मैंने यह देखा था। आज इस रियूनियन में वह भी हैं हम भी हैं, पर आज भी वो आंखें मैं नहीं भूला। हम एक दूसरे को देख रहे थे। मानो रुके हुए झरनों को किसी ने एक वेग में बहा दिया हो। इस शाम का असर इतना मनोहर था कि दिल का एक कोना आज भी हरा-भरा ही है। यह याद अमिट छाप है मेरी जिंदगी की।

— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]