सपने देखना अच्छी बात है। उन्हें पूरे करने के लिए कोशिश करना और भी अच्छी बात है। परन्तु सारी कोशिशों के बाद यदि सपना टूट जाता है तो जीवन से नाता तोड लेना बिल्कुल अच्छी बात नहीं है। सभी सपने सच हों ऐसा कोई नियम तो नहीं है। उसके लिए खुद को दोषी मानना सही तो नहीं है। खुद को सजा देना न्यायसंगत तो नहीं है। हमारे आसपास कुछ घटनाएं ऐसी घट जाती हैं जिनसे हम सीधे न भी जुड़े हों तो भी मन मस्तिष्क को झकझोर देती हैं। सोचने पर मजबूर कर देती हैं। विचारों का आवेग उत्पन्न करती हैं। सबसे दुखदाई घटना वही होती है जिसमें कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने सपने पूरे न हो पाने के कारण अपना जीवन समाप्त कर देता है। वह इंसान तो चला जाता है। परन्तु अपने पीछे कुछ अनसुलझे प्रश्न छोड़ जाता है।
एक अत्यंत प्रतिभाशाली व्यक्ति यदि सफलता के शिखर पर पहुंच कर अपनी इच्छा से संसार को अलविदा कह देता है, तो वह घटना उस सामाजिक परिवेश की असंवेदनशीलता को दर्शाती है। उसकी प्रतिभा को स्वीकारने की उनकी असमर्थता को दिखाती है। शक्तिशाली लोगों की कुंठित मानसिकता को दर्शाती है। घटना के लिए जो व्यक्ति जिम्मेदार होते हैं, उनके रास्ते का कांटा तो निकल जाता है। उनकी मनमानी का विरोध करने वाला एक और प्राणी कम हो जाता है। उनका हौंसला और भी बुलंद हो जाता है। उनकी योजना और भी प्रभावी हो जाती है। तो उन्हें सजा कहां मिली ?उनकी गलती की सजा तो जाने वाले को ही मिली। दुर्भाग्य वश वह व्यक्ति यह सब समझने के लिए जीवित नहीं होता है।
सफल व्यक्ति का अनुसरण करने वाले भी कई लोग होते हैं। इस कदम का पालन भी करते हैं। अपने आदर्श पर अपने प्राण न्यौछावर कर देते हैं। क्या इतनी ही कीमत है जीवन की। जिसने जब चाहा परेशान किया और जिसने जब चाहा अंत कर दिया। दुखद स्थिति यह है कि बेहतर जीवन दर्शन प्रदर्शित करने वाले जीवन की कीमत एक पल में भूल जाते हैं। वही जीवन जिसको बनाने में उन्होंने दिन रात मेहनत की। एक पल में तुच्छ हो जाता है। जीवन को अनुकरणीय बनाने में लगा अपना ही परिश्रम भूल जाते हैं।
जीवन अनमोल है। ऐसा कोई भी कारण दुनिया में नहीं है जो उसे खो देने के लिए बना हो। ऐसा कोई आदर्श नहीं को उसे स्वयं खोकर हासिल किया जा सके। जीवन मिलने के बाद ही मन में इच्छाएं जाग्रत हुई। और उसके बाद हमे अच्छे बुरे का ज्ञान हुआ। कुछ लोग हमे पसंद न करें, हमारा बुरा करें, हमारे कुछ सपने अधूरे रह जाएं, क्या इन सबके लिए अनमोल जीवन को खत्म कर देना चाहिए ? जीवन के रहते ही कोई भी वस्तु मूल्यवान है। किसी भौतिक वस्तु के लिए जीवन समाप्त करना क्या उचित है ? अपनी उच्च आकांक्षाओं की भट्टी में इसे झोंक देना क्या उचित है ?
माता पिता जिन्होंने हमारे जन्म के बाद से हमारी खुशी को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाया हो, क्या यही परिणाम हमसे चाहते हैं ? क्या उनके बचे हुए जीवन को भी हमने ग्रहण नहीं लगा दिया है ? जीते जी मरने के लिए मजबूत नहीं कर दिया है ?
इस अवस्था में अध्यात्म हमे रास्ता दिखाता है। ” कर्म कर, फल की चिंता मत कर।” इस एक ही वाक्य में सुखी जीवन का सार है। दुनिया में हमारा व्यवहार ही हमारा मित्र है, यही हमारा शत्रु भी है। समय से पहले, किस्मत से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता।” यह बात भी शत प्रतिशत सही है।
हम लोगों को जब स्वयं से अधिक महत्व देने लगते हैं, अपना महत्व खोने लगते हैं। हमारी निराशा का मुख्य कारण भी यही होता है। सभी प्राणी महत्वपूर्ण हैं लेकिन हमारे जीवन में हमसे अधिक कोई महत्वपूर्ण नहीं है।
सभी व्यक्ति किसी स्वार्थ के कारण हमसे जुड़े हैं। उनका स्वार्थ अगर हमसे पूरा होता है तभी हम उनके लिए महत्वपूर्ण होते हैं अन्यथा नहीं।
जन्म लेते ही वापसी का टिकट तो निश्चित हो ही जाता है। फिर खुद को कष्ट देकर, प्रियजनों को दुःखी करके दुनिया से जाने का निर्णय किस तरह सही है। गलत को सही करते करते हम कितना गलत कर जाते हैं। काश कोई तरीका होता जो मौत के बाद की दुनिया हम देख पाते। तब जान जाते कि जाने वाले अनजाने में उनको सही साबित कर जाते हैं जो उनके अस्तित्व को नकारते हैं। फिर उनमें और हममें अंतर क्या रहा ? हमारे जीवन का, हमारी अनन्त कोशिशों का संदेश क्या रहा? एक पल के लिए मन कमजोर पड़ा और सब खत्म हो गया। जरूरी है कि सफलता के लिए कठिन परिश्रम करने के साथ साथ मन को वश में करने की तकनीक भी विकसित की जाये। इस कहावत के साथ अपनी बात खत्म करती हूं।
” मन के हारे हार है, मन के जीते जीत”।
— अर्चना त्यागी