जीवन भटकाव
हैरान परेशान सा
भटक रहा
इधर उधर
इस बियावान में
ऐसे
जैसे
मृग फटकता फिरता है
जंगल जंगल
कस्तूरी को ढूंढने
जो है खुद उसके भीतर
हैरान परेशान सा
भटक रहा
इधर उधर
इस बियावान में
ऐसे
जैसे
मृग फटकता फिरता है
जंगल जंगल
कस्तूरी को ढूंढने
जो है खुद उसके भीतर