रहनुमां
हमसफर समझा था जिनको, रहनुमां साबित हुए ।
ख़ामोश तन्हा रहगुज़र का, काफ़िला साबित हुए।
बड़ी बेवज़ह ठहरी हुई थी, गुमशुदा सी जिंदगी,
वो बने हमदर्द क्या, बस खुशनुमा साबित हुए।
दिल था मुरझाया कहीं, खोया गुज़िश्ता वक्त में,
डूबने को नाव थी, वो नाखुदा साबित हुए ।
था निगाहों से हमारे, दिल तलक कोहरा घना,
रुह तक रौशन हुई, ऐसी शमां साबित हुए।
अश्क से लबरेज, आंखों के चुने मोती बहुत,
बूंद “स्वाती “की बने, यूँ बावफ़ा साबित हुये।
— पुष्पा ” स्वाती “