ग़ज़ल
गणतंत्र का उत्सव आया, ह्रदय में आशनाई हो ,
जात-पात, ऊंच-नीच का विष, ख़त्म तमाम बुराई हो |
निष्पक्ष साफ़ राजनीति हो, चुनो न स्वार्थी नेता को
जनता हित की बात करे, पर खून चूषण कसाई हो |
आज़ाद देश में आज़ादी, सब इसके अधिकारी हैं,
अमीर हो या गरीब हो, अब मुनसिब सब सुनवाई हो |
बिकास का लाभ सबको मिले, नेता ही सब ना खाए,
नेता जो है भ्रष्टाचारी, सब भ्रष्ट की खिंचाई हो |
संविधान की रक्षा करना, परमधर्म हो हम सबका,
हरेक व्यक्ति भारत देश का, इस मंत्र की इकाई हो |
संविधान गीता कुरान है, इसको रखना माथे पर,
इसकी बाते, शिक्षा- दीक्षा, सबके दिल में छाई हो |
अमीर गरीब का भेद-भाव, जड़ से हमें मिटाना है,
जनता नेता मिलकर करना, नीयत फ़क्त सचाई हो |
कालीपद ‘प्रसाद’
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