मां बेटे को दूध पिला के
पालती है कितना कष्ट सह के
बापू दिन रात मेहनत करके
अपने जिगर के टुकड़े को
तालीम हासिल करवाता
मां हर रोज दूध मक्खन खिलाती
जो बनता सो करती खुद भुखी सो जाती
सुबह ही बेटे को उठा कर
दौड़ लगाने भेजती उछल कूद करवाती
कड़ी मेंहनत के बाद
जब बेटा बर्दी पहन फौज से लौट कर
घर आता मां को सैल्यूट मारता
बाप का सीना गर्भ से दूना हो जाता
अब की बार गया तो
ख़बर नें झकझोर दीया
आतंकवादियो से जूझते हुए
बेटा शहीद हो गया
मां का कलेजा फट सा गया
बापू सुन्न हुआ निढाल हो कर गिर पड़ा
अखिर कब तक
मां के लाल यूँ ही शहीद होते रहेंगे
आतंकियों के आधुनिक हथियारों
के आगे कब तक पुराने घिसे
हथियारों से जवान भिड़ते रहेंगे
वक्त है सेना को सुसज्जित करने का
मनोबल बढ़ाने का
जवान की कीमत के आगे शस्त्रों की
कीमत नहीं आंकी जा सकती।
कब तक जवान शहीद होता रहेंगा
मां की गोद सूनी होती रहेगी
— शिव सन्याल