कविता

स्त्री है तो जीवन है

सहनशीलता की प्रतिमूर्ति, त्याग क्षमा गुणों की धात्री
सृजन सृष्टि की जो परिपालक, वह स्त्री है तो जीवन है
करती है अलंकृत हर घर को, करती पोषित नवजीवन को
महकाती है जो घर आंगन, वह स्त्री है तो जीवन है
बरसाती स्नेह दृष्टि सब पर, वात्सल्य प्रेम कि वह निर्झर
पतझड़ में भी जो है बसंत, वह स्त्री है तो जीवन है
जिस घर में  होता है आदर,वह फलता है उपवन सुंदर
महके जीवन नवजीवन बन, वह स्त्री है तो जीवन है
यह “रीत” कहे स्त्री जीवन, देती धरती पर नवजीवन
जो स्नेह लुटाती है हर क्षण, वह स्त्री है तो जीवन है

— रीता तिवारी “रीत”

रीता तिवारी "रीत"

शिक्षा : एमए समाजशास्त्र, बी एड ,सीटीईटी उत्तीर्ण संप्रति: अध्यापिका, स्वतंत्र लेखिका एवं कवयित्री मऊ, उत्तर प्रदेश