लघुकथा

कोरोना

“अरे रमेश ! वो अपने कालू अंकल नहीं दिखे पिछले कई दिनों से ? तुझे कुछ पता है ?”
 “कौन कालू अंकल ?”
” अरे वही …जो हरदम शेखी बघारते रहते हैं। मास्क लगानेवालों पर अक्सर हँसा करते हैं। अभी उस दिन तेरे सामने ही तो बोल रहे थे ‘ कोरोना वोरोना कुछ नहीं ,सब ढकोसला है, झूठ है।”
” अच्छा वो ? ..वो तो परसों ही स्वर्ग सिधार गए !”
 ” हे भगवान ! भले चंगे तो थे। अचानक क्या हो गया था उनको ?”
 ” कोरोना !”

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।