मायका
कभी कभी दिल चाहता है ,
उड़ कर जाना उस जगह,
आंगन में उस जहाँ है बचपन
पर उड़े कैसे वो क्योंकि ,
बंधन में है पिंजरे के वो,
जिम्मेदारी का घेरा है आस पास,
कैसे तोड़े इस बंधन को वो,
जिसमे बांध दिया खुद बाबुल ने,
तब तन्हाई में अकेले सोचती है
काश मायका होता नजदीक ,
पल में पहुंच जाती वो वहां,
मिल आती सभी से जब चाहे ,
जिम्मेदारी भी इसको न लगती बंधन ,
काश ! मायका होता उसका इसी शहर में
इतनी न याद आती कभी मायके की ।।
डॉ सारिका औदिच्य