भारतरत्न डॉ. अंबेडकर के बारे में कई अनकही दास्तां !
एक दूधवाले (काजरोलकर) से डॉ. अम्बेडकर बम्बई (उत्तरी) से प्रथम लोकसभा चुनाव हार गए थे, दूसरी बार ‘उपचुनाव’ में भी हारे थे !
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हस्तमैथुन, समलैंगिकता के पक्ष में ‘समाज स्वास्थ्य'(संपादक- RD कर्वे) का केस डॉ.अम्बेडकर ने बॉम्बे हाईकोर्ट में 1934 में ही लड़े थे!
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भारतरत्न डॉ.अम्बेडकर ने कहा था- ‘अगर कोई यौन मामलों पर लिखता है, तो अश्लील नहीं कहा जा सकता!’ [बहस, बॉम्बे हाईकोर्ट,28.2-24.4.’34]
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अगर ‘राज्यसभा’ नहीं होता, तो डॉ0 आंबेडकर ‘केंद्रीय मंत्री’ भी नहीं बन पाते ? जबतक डॉ. अम्बेडकर जीवित रहे, उनके अपने लोगों ने ही उन्हें सम्मान नहीं दिए ! अब मरने के बाद उन्हें पूजा कर हरकोई उसे अपना बता रहे !
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डॉ0 भीमराव रामजी आंबेडकर का जन्म ‘महाराष्ट्र’ में नहीं हुआ था!
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क्या वे माता-पिता के 14वीं संतान थे?
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‘कर’ उपनाम महाराष्ट्र में ब्राह्मणों के हैं, यथा:- मंगेशकर, मातोंडकर, अगरकर, आचरेकर, आंबेडकर इत्यादि।
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अगर वे ‘महार’ जाति से संबंधित थे, तो क्या उत्तर भारत में इसे ‘मेहतर’ कहा जाता है?
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‘मराठाराष्ट्र’ से तात्पर्य ‘महाराष्ट्र’ है या महाराष्ट्र है ‘महारराष्ट्र’ के विन्यसत: !
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14 अप्रैल को डॉ0 भीमराव रामजी आंबेडकर के जन्मदिवस की अंग्रेजी तारीख है, जबकि तब भारतीय समाज में विक्रमी संवत का प्रचलन था।
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उस समय इंग्लैंड और यूएसए में शिक्षा धनी वर्ग प्राप्त करते थे, भीमराव धनी थे या निर्धन!
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उनके पिता सूबेदार थे, क्या उनकी हैसियत आर्थिक कद्दावर की थी ? सूबेदार पद बड़ौदा महाराज के सेना में से थे या ब्रिटिश भारत में से?
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क्या भीमराव ‘बड़ौदा महाराज’ से छात्रवृत्ति प्राप्त कर इंग्लैंड व यूएसए पढ़ने गए थे? तो बड़ौदा महाराज का इनसे कोई लाभ लेने या किसी तरह के मकसद भी छिपा था?
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भीमराव के पिताजी का पूरा नाम है– रामजी मालोजी सकपाल । तो क्या इस उपनाम लिए उनका पूर्वज उत्तर भारत से थे! क्योंकि सकपाल में ‘पाल’, फिर ‘महार’ को लेकर ‘कुम्हार’ तथ्यत: उभरते हैं !
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अर्थशास्त्री डॉ0 आंबेडकर ने क्या ‘विधि’ की शिक्षा भी प्राप्त की थी?
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भारतीय स्वतंत्रता कालावधि में ‘स्वतंत्रता सेनानी’ के तौर पर उन्हें वामपंथी इतिहासकारों ने क्यों नहीं याद किया है? उन्हें सिर्फ अनुसूचित जाति के नेता के तौर पर याद किया है!
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डॉ0 आंबेडकर तो ब्राह्मण प्रधानमंत्री पं0 ज.ला. नेहरू के अंतर्गत ही विधि मंत्री थे! इनसे परेशान होना चाहिए था!
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क्या उनके जीवनकाल में अनुसूचित जाति के ही वरेण्य नेता बाबू जगजीवन राम ने उन्हें आगे बढ़ने नहीं दिया?
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‘संविधान सभा’ के सर्वेसर्वा पद अध्यक्ष द्वय डॉ0 सच्चिदानंद सिंहा, डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद ‘बिहार’ से थे, संविधान सभा द्वारा ‘भारतीय संविधान’ के निर्माण हेतु ‘प्रारूप समिति’ गठित किया गया, जिनका अध्यक्ष डॉ0 आंबेडकर को बनाया गया । जबकि सचिव डॉ0 बी0 एन0 राव ‘दक्षिण भारत’ से थे । कई महत्त्वपूर्ण देशों के संविधानों के अध्ययन के लिए डॉ0 राव ने यात्रा किया था । फिर तो प्रारूप समिति में कई सदस्य थे । संविधान का प्रारूप निर्माण में सामूहिक प्रयास हुए थे, तो संविधान निर्माता व भारतीय संविधान के पिता व जनक जैसे उपनाम कहलाने का वैज्ञानिक आधार क्या है? क्योंकि सूचना का अधिकार अधिनियम अंतर्गत भारत सरकार ने भी ‘भारतीय संविधान के पिता कौन’ की सूचना नहीं दिया!
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संवैधानिक आरक्षण का आधार आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक आदि रूप से शोषित व वंचित समाज के वर्ग को आधार बनाया गया था, जिनमें अनुसूचित जाति व जनजातियाँ समादृत थी, तो पिछड़ा वर्ग भी? आज जो ओबीसी है, वो संभवतः डॉ0 राम मनोहर लोहिया, श्री वी0पी0 मंडल, श्री कर्पूरी ठाकुर समेत पूर्व प्रधानमंत्री श्री वी0पी0 सिंह के कारण तो नहीं! क्या आरक्षित वर्ग में ‘क्रीमी लेयर’ संविधानशोधित है? जहाँ अब तो सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को आरक्षण मिल चुका है, जिनमें 8 लाख वार्षिक आयवाले और 5 एकड़ जमीनवाले गरीब नहीं हैं !
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‘मनु संहिता’ अवतारवाद और भगवान को जन्म दिया है । ‘मनु संहिता’ असामाजिक था और डॉ0 आंबेडकर इस पुस्तक के सबसे बड़े आलोचक थे, बावजूद डॉ0 आंबेडकर को भगवान की तरह पूजा जाना गलत तो नहीं!
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क्या वे अंतिम समय में बौद्ध धर्मावलम्बी थे? हिन्दू समाज से वे प्रताड़ित थे या उनकी विसंगतियाँ से!
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क्या डॉ0 आंबेडकर ने काफी उम्र में दूसरी शादी किये थे, वह भी ब्राह्मणी के साथ!
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श्रीमती इंदिरा गांधी तो अपने कार्यकाल में ही ‘भारत रत्न’ से विभूषित हो गई थी, अगर डॉ0 आंबेडकर को उनके जीवनकाल में ही काँग्रेसनीत भारत सरकार पहचाने होते, तो उन्हें तब ही ‘भारत रत्न’ से विभूषित कर दिया जाता! उनके जीवनकाल में अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग के लोग भी उन्हें औसत समझते थे? तभी तो उनके निधन के 35वें साल ही उन्हें भारत सरकार ने ‘भारत रत्न’ सम्मान प्रदान किया, तब केंद्र में शायद प्रधानमंत्री वी0पी0सिंह की सरकार थी और यह सरकार बी0जे0पी0 के समर्थन पर टिकी थी! ‘भारत रत्न’ मिलने के बाद ही ‘डॉ0 आंबेडकर के साहित्य और दर्शन’ का जोर-शोर से प्रचार-प्रसार हुआ। तब अनुसूचित जाति के बड़े नेता मान्यवर कांशीराम भी बी0जे0पी0 से टच में थे?
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ऐसा कहा जाता है, भारतीय संविधान हेतु बहस के दौरान डॉ0 आंबेडकर ने ‘राज्यसभा’ के अस्तित्व को ‘बैकडोर’ से अपराधी-मनोवृत्तियों के आना बताते हुए इसके अवधारणा को नकारा था! सोचिए, अगर संविधान में राज्यसभा का अस्तित्व नहीं होता, तो डॉ0 आंबेडकर न ‘विधि मंत्री’ बन पाते ! क्योंकि उनके ही प्रारूपीय ‘लोकसभा’ चुनाव वे हार गए थे और मंत्री बना रहने के लिए 6 माह के अंदर सांसद बनना अनिवार्य है।
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‘इत्यादि’ लिए और भी कई सारे सवालात मन में उमड़-घुमड़ रहे हैं। किंतु डॉ0 आंबेडकर अगर ‘संविधान’ के पर्याय हैं, तो मेरा अस्तित्व है !
बहुमुखी प्रतिभा के धनी और समतामूलक समाज के प्रणेता में अग्रणी भारतरत्न डॉ0 आंबेडकर को उनके जन्मदिवस पर श्रद्धासुमन….