नीरद चौधुरी से नायपॉल तक
नीरद सी. चौधुरी का देहावसान हुआ था, तब इसे अंतिम भारतीय अंग्रेज कहा गया था, वी. एस. नायपॉल भी अपने को अंग्रेज समझते थे, क्योंकि 2001 में जब उसे साहित्य का ‘नोबेल पुरस्कार’ मिला, तो भारतीय मीडिया ने सूचना प्रसारित किया, “भारतीय मूल के विख्यात लेखक विद्याधर सूरजप्रसाद नायपॉल (V. S. Naipaul) को वर्ष 2001 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ है। रवीन्द्रनाथ टैगोर के बाद साहित्य का नोबेल पानेवाले वे दूसरे भारतीय व भारतीय मूल के व्यक्ति हैं”।
….तो वे भारतीय मीडिया से उखड़ गए थे कि वे भारतीय नहीं हैं । उनके नाम का शब्द-विस्तार भले ही हिन्दू के प्रसंगश: है, किन्तु वे अपने को हिन्दू नहीं, क्रिश्चियन मानते थे । उनकी प्रणीत सभी पुस्तकें भले ही महान उपलब्धियों के उदाहरण हैं, किन्तु भारत के बारे में लिखी उनकी पुस्तकों में बंगाल की मां काली को खोपड़ियों की महिला कहा है, कोलकाता के काली मंदिरों में नारियल जो फोड़े जाते हैं !
….तो सड़क पर शौच करती महिलाओं को लेकर लिखा है– यह कैसा देश है? तारीख 11 अगस्त 2018 को नायपॉल का निधन हो गया, वह 85 वर्ष के थे. नायपॉल के परिवार ने शनिवार को उनके निधन की घोषणा की । उन्हें 1971 में बुकर प्राइज भी मिला था । उनका जन्म 1932 में त्रिनिदाद में हुआ था । नायपॉल की पहली किताब ‘द मिस्टिक मैसर’ 1951 में प्रकाशित हुई थी । उनकी पुस्तक ‘ए हाउस फॉर मिस्टर बिस्वास’ दुनिया भर में चर्चित है।
….तो उन्हें ब्रिटेन की महारानी द्वारा ‘सर’ (Knight) की उपाधि से भी नवाजा गया था। वी एस नायपॉल के पूर्वज भारत के गोरखपुर से थे, जिनके दादा सूरजप्रसाद को अंग्रेजों ने गिरमिटिया मजदूर के तौर पर 1880 में ट्रिनिडाड लेकर गए थे, वापसी की उम्मीद न पा वहीं बस गए और वहाँ की महिला से शादी कर वहीं बस गए।