कहानी

हम होंगे कामयाब

सम्बंध विच्छेद के मुकदमे की पहली तारीख़ थी । बहुत दिनों बाद चार्वी संचित को देख रही थी । संचित उसके जीवन का आदर्श पुरूष हुआ करता था ।

आज से पाँच वर्ष पूर्व ही तो मिले थे दोनों दफ़्तर की कैंटीन में । चार्वी सुबह देर से उठी थी , खाना बनाने का समय बचा नहीं था तो यूँ ही एक कप चाय पीकर दफ़्तर आ गयी थी । काम करते-करते जब भूख लगी तो कैंटीन में बैठी सोच ही रही थी कि क्या मंगाए तभी उसी की मेज पर संचित आ कर बैठ गया था ” मैंने आज ही जॉइन किया हैं ” कहते हुए । धीरे-धीरे परिचय बढ़ा तो मित्रता प्रगाढ़ होने लगी ।

संचित सदा उसका ध्यान रखते । बहुत अच्छा खाना बनाते थे । उनके बनाये व्यंजन के आगे चार्वी को अपना बनाया भोजन न भाता । तब हँस कर संचित चार्वी का टिफिन खा लेते और अपना टिफिन उसे दे देते थे । तुम खा लो मुझे तो यह सब्ज़ी रात में फिर खानी पड़ेगी , सुबह भी यही खाया । तुम्हारे टिफिन से मेरा चेंज हो जाएगा । बिना एक-दूसरे को जताये दोनों एक-दूसरे की ही खुशी के लिए जीने लगे थे ।

एक नहीं पूरे तीन साल दोनों ने एक-दूसरे को परखा था फिर अब दोनों ही एक-दूसरे के साथ ही परिवार बसाना चाहते हैं, यह बख़ूबी समझ गये थे । दोनों ने ही घर में बात की और दोनों की आपसी सहमति व प्यार को देखते हुए परिवार वालों ने अच्छा मुहूर्त देख कर दोनों को परिणय सूत्र में बांध दिया ।

अब दोनों के दिन पर लगा कर उड़ने लगे थे , सोने के दिन चांदी सी राते । ज़िंदगी इतनी सुंदर हो सकती हैं यह कभी सोचा नहीं था । यह स्वर्णिम युग जीवन में आये अभी मात्र वर्ष भर ही हुआ था कि जीवन में राहु-शनि की दशा की भांति कोरोना का कहर चीन ने भेज दिया ।

आरम्भ के दिन तो बहुत आनन्द दायक थे । घर में ही हनीमून का वातावरण हो गया । दोनों ही वर्क फ्रॉम होम करते नज़दीक से नज़दीकतर आते गये । फिर नयी भर्ती के कारण संचित की नौकरी चली गयी , बस उस दिन के बाद से ही जीवन ही बदल गया ।

संचित अब कुछ बुझा-बुझा रहता । चार्वी कितना ही ध्यान रखती उसका पुरूष-मन संतुष्ट न होता निष्क्रिय घर बैठने से । अब वह सदा लैपटॉप लेकर नौकरी ही खोजा करता । बीच बीच में बाहर भी जाता इंटरव्यू देने पर नौकरी कहीं लगी नहीं और उसका रवैया भी बदल गया । कहाँ जा रहा है , किस कंपनी में साक्षात्कार दे रहा है कुछ साझा नहीं करता ।

आपसी रिश्ते में भी शुष्कता आने लगी। हफ़्तों हो जाते संचित चार्वी को प्यार ही नहीं करता । अब चार्वी को भी शक होने लगा था । लिहाज़ा एक दिन चार्वी ने उसके घर से बाहर जाते ही उसका लैपटॉप खोल लिया ।

काश उसने न खोला होता , उसकी चैट न पढ़ी होती । सर घूम रहा था चार्वी का । पैसे कमाने का संचित ने निकृष्टतम रास्ता खोज लिया था । जिगोलो…उफ्फ
उसका आदर्श पुरूष इतने निम्न स्तर पर ? कोरोना ने उसकी हँसती-खिलखिलाती बगिया उजाड़ दी थी ।

ख्यालों से बाहर आते ही संचित के उतरे मुँह को देखते कलेजा मुँह को आने लगा था चार्वी का। नहीं अब वो अपने आदर्श पुरूष को और न गिरने देगी । तलाक समाधान नहीं बल्कि दलदल में और धकेलना होगा अपने पति को।

झटके से चार्वी बढ़ी और संचित का हाथ पकड़ अदालत से बाहर निकल गयी ।
” मैं फिर से सँवार लूँगी संचित अपनी बगिया । देखो संचित, मेरे पैसे तुम्हारे ही हैं और तुम्हारी सेहत पर सिर्फ मेरा हक़ हैं ।वादा करो कि अब और बर्बाद नहीं करोगे । यह समय बीत जाएगा पर यदि स्वास्थ्य चला गया तो कुछ न बचेगा । मेरा साथ दो , हम मिल कर बुरे वक्त से लड़ेंगे और जीतेंगे । ”
संचित ने धीरे से चार्वी का हाथ पकड़ कर सहमति जता दी । बगिया में कली खिल उठी।कोयल कूकने लगी।

— निवेदिताश्री