कहानी

कहानी – टुलु की प्रेमकथा 

यह प्रेम कथा है..असम के आदिवासी परिवार में जन्मी एक सोलह वर्षीय लड़की टुलुमुनि की।  जिसको प्यार सब टुलु कहते थे। एक सीधा साधा आदिवासी असमिया परिवार कोकराझार के एक छोटे से गांव में रहता था। चार बच्चों सहित छह लोगों का यह परिवार दिहाड़ी मजदूरी करता था। टुलु इस परिवार की सबसे बड़ी बेटी थी। बंडल नामक एक लड़का जो टुलु के ही गांव में रहता था… दोनों एक साथ दिहाड़ी मजदूरी करते थे। बंडल की उम्र लगभग अट्ठारह वर्ष की थी। किशोरावस्था से ही दोनों एक दूसरे की तरफ आकर्षित हो गए थे।
इन आदिवासियों में भी कुनबे परिवार व उपजातियां होती हैं.. इसलिए टुलु के परिवार को उनकी बेटी का बंडल से मिलना बिल्कुल पसंद नहीं था। वह टुलु से कह चुके थे कि..तुम बंडल से मिलना- जुलना छोड़ दो…क्योंकि वह हमारे कुनबे का नहीं है…लेकिन उन दोनों के ऊपर परिवार की बातों का कोई असर नहीं था। वह पहले की भांति ही ढींग नदी पर रोज शाम को मिलते और घंटों बातें करते…तथा हर सुख-दुख में एक दूसरे का साथ निभाने की कसमें लेते थे। दोनों का आत्मिक प्यार दिन प्रतिदिन गहराता जा रहा था। इस तरह सच्चे प्यार में पगे दोनों को दो वर्ष हो गए थे। अब टुलु अट्ठारह वर्ष की और बंडल बीस वर्ष का हो चुका था। जल्दी दोनों विवाह के बंधन में बंधना चाहते थे…पर दोनों के परिवार का रवैया आड़े आ रहा था।
टुलु के परिवार वालों ने कह दिया था कि… अगर तुम बंडल के साथ गईं तो… हम तुम्हें कभी स्वीकार नहीं करेंगे…पर टुलु ने उनकी बातों को हवा में उड़ा दिया। प्रतिपल उन दोनों का प्यार हवा में खुशबू की तरह घुल मिल रहा था। उन दोनों का प्यार जाति के भेदभाव से दूर निस्वार्थ था। समुद्र की गहराई नापी जा सकती थी पर… उन दोनों का प्रेम मापा नहीं जा सकता था। उनका सच्चा प्रेम हीर-रांझा, लैला-मजनू और रोमियो-जूलियट की तरह परवान चढ़ रहा था। दोनों एक दूसरे से कभी अलग ना होने की कसमें खा चुके थे।
जिस तरह सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख का आना निश्चित है। उसी तरह टुलु के सुखी जीवन में भी दुख का पहाड़ टूट पड़ा। अचानक एक बड़ा हादसा हुआ।
दोनों एक बड़ी सी इमारत पर दिहाड़ी का काम कर रहे थे कि… यकायक तीसरी मंजिल से बंडल का पैर फिसल गया…और वह नीचे गिर पड़ा।
ठेकेदार बंडल को तुरंत एंबुलेंस में डालकर अस्पताल ले गया। बंडल बच तो गया पर…उसके पेट में बहुत गहरी चोट लगी थी। वह डिब्रूगढ़ के मेडिकल कॉलेज में भर्ती था। टुलु को गहरा सदमा लगा। वह सब कुछ भूल कर रात दिन उसकी सेवा में लग गई। वह पूरी-पूरी रात जाग कर अस्पताल में उसकी सेवा करती थी। बंडल के परिवार वाले भी उसकी देखभाल कर रहे थे…लेकिन सबसे ज्यादा बंडल की सेवा में टुलु का योगदान था। जब टुलु के घर वालों को इस बात का पता चला…तो उन्होंने टुलु को घर से हमेशा हमेशा के लिए तिलांजलि दे दी। टुलु को अपने परिवार द्वारा छोड़ दिए जाने की लेश मात्र भी चिंता नहीं थी। वह तो सिर्फ…बंडल को पूरी तरह ठीक देखना चाहती थी।
अब बंडल को अस्पताल में पड़े हुए…लगभग दो माह हो चुके थे। वैसे तो बंडल पूरी तरह ठीक था… बात भी कर रहा था…पर पेट के दर्द से कराहता रहता था। टुलु उसका सारा काम बिस्तर पर ही करती थी। वह छोटी सी अट्ठारह वर्ष की टुलु दो माह में ही सयानी हो चुकी थी। वह रात-दिन अपने डांगरिया बाबा से बंडल के ठीक होने की प्रार्थना करती थी। असम के आदिवासी लोग खोकन पेड़ या अन्य किसी पेड़ पर डांगरिया बाबा यानी शिव का वास मानकर उसकी तन मन से पूजा करते हैं…और मनोवांछित फल की कामना करते हैं। रानी माया ने भी साल वृक्ष के नीचे ही महात्मा बुद्ध को जन्म दिया था। वैसे भी हिंदू धर्म में विभिन्न वृक्षों की पूजा की जाती है…क्योंकि यह वृक्ष हमें जीवन की सांसे देते हैं। डांगरिया बाबा ने टुलु की प्रार्थना स्वीकार नहीं की। बंडल के पेट की सर्जरी नाकामयाब रही और उसके सांसो की डोर टूट गई।
टुलु की आंखों के आगे अंधेरा छा गया। उसे चारों तरफ काला गहन अंधकार दिखाई दे रहा था। वह अपने जिस सच्चे प्रेमी की रात दिन एक कर के सेवा कर रही थी…भविष्य के रंगीन स्वप्न देख रही थी। वह अचानक उसे रोता बिलखता छोड़ कर चला गया।
बंडल के परिवार में सिर्फ उसका बूढ़ा पिता था। मां नहीं थी.. और बहनों की शादी हो चुकी थी।  पिता को भी बुढ़ापे की बीमारी थी और…वह बिस्तर पकड़ चुका था।
टुलु ने मृत्यु शैया पर पड़े बंडल से अपनी मांग में सिंदूर भरवा लिया था…इसलिए बंडल का सब क्रिया कर्म भी टुलु ने ही किया। जैसे तैसे पंद्रह दिन तो टुलु को बंडल के घर में शोक करते हुए बीत चुके थे। बंडल के पिता ने कहा…अब बेटा नहीं रहा…तो तुम यहां कैसे रह सकती हो ? कुनबे के लोग क्या कहेंगे तुम्हारी तो विधिवत शादी भी नहीं हुई है। अब तुम अपने घर वापस चली जाओ।
यह बात सुनते ही टुलु को बहुत जोर का झटका लगा…उसे काटो तो खून नहीं…क्योंकि उसके परिवार वालों ने तो पहले ही उसे घर से निकाल दिया था। अब बंडल का परिवार भी घर से निकाल रहा था…वह कहां जाएगी। उसने बंडल के परिवार के आगे हाथ जोड़कर कहा…उसे तब तक यहां रहने दिया जाए…जब तक उसका कहीं रहने का ठिकाना नहीं हो जाता है। उसने बीमार बूढ़े पिता के पैर छूकर कहा…मुझे कुछ समय के लिए रख लीजिए। मैं आपकी सेवा करुंगी…पर उसका आदिवासी समाज इस बात की अनुमति नहीं दे रहा था। आदिवासी समाज की पंचायत बैठी…और यह निर्णय लिया गया कि अब इस लड़की को यहां से जाना होगा…क्योंकि इसका ब्याह बंडल के साथ नहीं हुआ है।
अब टुलु को घर से खदेड़ दिया गया। वह दुखी मन से अपने पिता के घर गई। वहां पर भी सभी लोगों ने उसको घृणा की दृष्टि से देखा… और उसका तिरस्कार करके भगा दिया। वह परेशान होकर इधर-उधर भटकने लगी। काम तो उसे दिहाड़ी का मिल जाता था…पर सर छिपाने की जगह नहीं थी। थक-हार कर टुलु को रेलवे स्टेशन पर पटरियों के किनारे शरण लेनी पड़ी।
टुलु को वहां रहते हुए कुछ समय ही बीता होगा कि…एक दिन उसको विक्षिप्त अवस्था में…फटेहाल सड़क पर चिल्लाते हुए देखा गया। टुलु के सच्चे आत्मिक प्रेम ने उसे मृत्यु तो नहीं दी…लेकिन मतिभ्रष्ट करके दर-दर भटकने के लिए मजबूर कर दिया। जब तक समाज से जाति-भेद की अमानवीयता का कोढ़ दूर नहीं होगा तब तक न जाने कितनी टुलु बावली सी इधर-उधर भटकती रहेंगी।
— डॉ. निशा नंदिनी भारतीय 

*डॉ. निशा नंदिनी भारतीय

13 सितंबर 1962 को रामपुर उत्तर प्रदेश जन्मी,डॉ.निशा गुप्ता (साहित्यिक नाम डॉ.निशा नंदिनी भारतीय)वरिष्ठ साहित्यकार हैं। माता-पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता व राधा देवी गुप्ता। पति श्री लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता। बेटा रोचक गुप्ता और जुड़वा बेटियां रुमिता गुप्ता, रुहिता गुप्ता हैं। आपने हिन्दी,सामाजशास्त्र,दर्शन शास्त्र तीन विषयों में स्नाकोत्तर तथा बी.एड के उपरांत संत कबीर पर शोधकार्य किया। आप 38 वर्षों से तिनसुकिया असम में समाज सेवा में कार्यरत हैं। असमिया भाषा के उत्तरोत्तर विकास के साथ-साथ आपने हिन्दी को भी प्रतिष्ठित किया। असमिया संस्कृति और असमिया भाषा से आपका गहरा लगाव है, वैसे तो आप लगभग पांच दर्जन पुस्तकों की प्रणेता हैं...लेकिन असम की संस्कृति पर लिखी दो पुस्तकें उन्हें बहुत प्रिय है। "भारत का गौरव असम" और "असम की गौरवमयी संस्कृति" 15 वर्ष की आयु से लेखन कार्य में लगी हैं। काव्य संग्रह,निबंध संग्रह,कहानी संग्रह, जीवनी संग्रह,बाल साहित्य,यात्रा वृत्तांत,उपन्यास आदि सभी विधाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मुक्त-हृदय (बाल काव्य संग्रह) नया आकाश (लघुकथा संग्रह) दो पुस्तकों का संपादन भी किया है। लेखन के साथ-साथ नाटक मंचन, आलेखन कला, चित्रकला तथा हस्तशिल्प आदि में भी आपकी रुचि है। 30 वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों व कॉलेज में अध्यापन कार्य किया है। वर्तमान में सलाहकार व काउंसलर है। देश-विदेश की लगभग छह दर्जन से अधिक प्रसिद्ध पत्र- पत्रिकाओं में लेख,कहानियाँ, कविताएं व निबंध आदि प्रकाशित हो चुके हैं। रामपुर उत्तर प्रदेश, डिब्रूगढ़ असम व दिल्ली आकाशवाणी से परिचर्चा कविता पाठ व वार्तालाप नाटक आदि का प्रसारण हो चुका है। दिल्ली दूरदर्शन से साहित्यिक साक्षात्कार।आप 13 देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं। संत गाडगे बाबा अमरावती विश्व विद्यालय के(प्रथम वर्ष) में अनिवार्य हिन्दी के लिए स्वीकृत पाठ्य पुस्तक "गुंजन" में "प्रयत्न" नामक कविता संकलित की गई है। "शिशु गीत" पुस्तक का तिनसुकिया, असम के विभिन्न विद्यालयों में पठन-पाठन हो रहा है। बाल उपन्यास-"जादूगरनी हलकारा" का असमिया में अनुवाद हो चुका है। "स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्व विद्यालय नांदेड़" में (बी.कॉम, बी.ए,बी.एस.सी (द्वितीय वर्ष) स्वीकृत पुस्तक "गद्य तरंग" में "वीरांगना कनकलता बरुआ" का जीवनी कृत लेख संकलित किया गया है। अपने 2020 में सबसे अधिक 860 सामाजिक कविताएं लिखने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। जिसके लिए प्रकृति फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया। 2021 में पॉलीथिन से गमले बनाकर पौधे लगाने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। 2022 सबसे लम्बी कविता "देखो सूरज खड़ा हुआ" इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। वर्तमान में आप "इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल न्यास" की मार्ग दर्शक, "शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास" की कार्यकर्ता, विवेकानंद केंद्र कन्या कुमारी की कार्यकर्ता, अहिंसा यात्रा की सूत्रधार, हार्ट केयर सोसायटी की सदस्य, नमो मंत्र फाउंडेशन की असम प्रदेश की कनवेनर, रामायण रिसर्च काउंसिल की राष्ट्रीय संयोजक हैं। आपको "मानव संसाधन मंत्रालय" की ओर से "माननीय शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी जी" द्वारा शिक्षण के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। विक्रमशिला विश्व विद्यालय द्वारा "विद्या वाचस्पति" की उपाधि से सम्मानित किया गया। वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव इंडोनेशिया व मलेशिया में छत्तीसगढ़ द्वारा- साहित्य वैभव सम्मान, थाईलैंड के क्राबी महोत्सव में साहित्य वैभव सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन असम द्वारा रजत जयंती के अवसर पर साहित्यकार सम्मान,भारत सरकार आकाशवाणी सर्वभाषा कवि सम्मेलन में मध्य प्रदेश द्वारा साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुआ तथा वल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज किया गया। बाल्यकाल से ही आपकी साहित्य में विशेष रुचि रही है...उसी के परिणाम स्वरूप आज देश विदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें पढ़ा जा सकता है...इसके साथ ही देश विदेश के लगभग पांच दर्जन सम्मानों से सम्मानित हैं। आपके जीवन का उद्देश्य सकारात्मक सोच द्वारा सच्चे हृदय से अपने देश की सेवा करना और कफन के रूप में तिरंगा प्राप्त करना है। वर्तमान पता/ स्थाई पता-------- निशा नंदिनी भारतीय आर.के.विला बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी, गली- ज्ञानपीठ स्कूल तिनसुकिया, असम 786192 [email protected]