एक ठो लाइफबॉय साबुन !
क्या यह सोचना उचित होगा कि आने वाली हर पीढ़ी बाबा साहब का अंधानुकरण ही करें या मान्यवर कांशीराम के मार्ग पर ही चले ? समाज के विकास की सतत प्रक्रिया होती है, इसलिए नए तथ्यों के आलोक में हमेशा नई रणनीति के साथ ही कुछ नया करना पड़ता है। बाबा साहब ने महामना ज्योतिबा फुले को अपना गुरु माना, लेकिन फुले के आर्य आक्रमण सिद्धांत को नकार दिए । मान्यवर कांशीराम ने बाबा साहब को आदर्श बनाया, लेकिन उनसे हटकर जातियों के उच्छेद जैसे दुरूह कार्य को हाथ नहीं लगाया। लेखक श्री मनोज अभिज्ञान ऐसा लिखते हैं।
क्या आने वाली पीढ़ियाँ हमेशा कुछ न कुछ नया करती रहेंगी, इसलिए यह सोचना कि हमारे फलां महापुरुष ने तो यह कहा था करने को या वो कहा था करने को ? ये सारी बातें आपको लकीर का फ़क़ीर बनाता है । अपने महापुरुषों से सीख लेते हुए समय के साथ खुद को परिवर्तित करते हुए निरंतर नए रास्तों की तलाश कीजिए ।यही सही तरीका होता है। पूजा तो पूजा होती है, फिर गरीब भारत में ‘पंडाल’ पर करोड़ों खर्च क्यों? वह भी कुछ दिनों के बाद फिर उजाड़! जबकि एक साल के उन चंदों से वहाँ स्थायी तौर पर मन्दिर और छत हो जाते! करोड़ों रुपये के क्षणभंगुर ‘पंडाल’ को लेकर कोई इसे सुस्पष्ट करेंगे!
आदरणीय लेखक श्री राजीव कुमार भारद्वाज लिखते हैं- माननीय सुप्रीम कोर्ट को इन तथ्यों पर संज्ञान लेना चाहिए कि कैसे सांसदों, विधायकों, विधान पार्षदों एवं अन्य प्रकार के जनप्रतिनिधियों की कमाई व संपत्तियां सिर्फ एक कार्यकाल व 5 वर्षों में 80% तक बढ़ जाती है, जबकि वेतन व भत्ते उनकी कमाई व आय के स्रोत नहीं है, यह सिर्फ जीविकोपार्जन हेतु है!
यह सवाल कोई विपक्षी पार्टी भी नहीं कर पाएंगे, क्योंकि वह भी तो जनता के पैसों के लूट में शामिल हैं। बारी-बारी से दोनों ही लूटा करेंगे! अन्यथा, जनता की नियति ‘विडम्बना’ बनी रहेगी ! इधर मैं अवकाश में हूँ ! मजदूरी निकालने हेतु अपने मालिक का कुछ कार्य किया ! ईंट ढोया, मजदूरी में एक कप ‘चा’ और एक ठो ‘लाइफबॉय’ साबुन मिला ! भैया, कुछ देर पहले ही ईंट ढोने कार्य से फ़ारिग हुआ हूँ!