मन की स्वच्छंदता
प्राचीन उपवास में उपवासवाले दिन से एक दिन पहले ‘अरवा’ यानी बिना नमक के ‘अरवा’ भोजन ही किये जाते थे, फिर उपवासवाले दिन ‘सूर्यास्त’ तक जल तक ग्रहण किए बिना उपवास रहते थे यानी निर्जला, फिर उपवास फलाहार से तोड़ते थे !
अब डिजिटल उपवास हो गया है… स्त्रियाँ घर में काम के डर से ‘मंगलवार’ और ‘गुरुवार’ को उपवास रहती हैं…. यह विचित्र उपवास है…. सिर्फ़ नमक और मांसाहार नहीं करेगी, किन्तु दिनभर मखाना खाएगी, मूँगफली खाएगी, काजू खाएगी, सेब खाएगी, केले खाएगी और मौका मिला तो रसगुल्ला भी खा जाएगी।
पानी तो दिनभर लेंगी ! इसतरह के नियम को लेकर जब मैंने एक कथित उच्च जातिधारक मित्र से पूछा, तो जवाब थे…. ऐसा भी है ! यानी चित्त भी उनकी, पट भी ! जिसतरह से नियोजित शिक्षकों के लिए नीतीश जी ‘मनमाना नियम’ बना रहे हैं, ठीक यही ‘मनमानी नियम’ इन डिजिटल उपवासव्रतियों के पास होते हैं !
ऐसी व्रती सास-ससुर को भूल रंगून से आये बैलून वाले पिया को और उनसे उत्पन्न संतान के सिवाय और किसी के बारे में नहीं सोचती है, वे भीखमंगे को दान नहीं करेगी, तो रिक्शेवाले से किराये देने में उलझेगी ! यह कैसी आस्तिकता है, भाई ! जो पत्थर की मूर्ति के सिवाय सजीव मूर्त्ति पर ध्यान नहीं देती ! यानी ‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूजे ना कोई ।’
अगर आप में सेवा की भावना नहीं है, अगर आप दूसरे के प्रति मनभेद पालते हैं, तो यह कैसी आस्तिकता है ? भीतरघाती व्यक्तियों से बचकर ही रहना चाहिए, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष ! अगर मतभेद है तो ‘बेबाक़ीपन’ होंगे ही ! आप अपने हर कृत्य के लिए शाबासी नहीं पा सकते ! लोग हर समय आपकी प्रशंसा नहीं कर सकते ! ‘मन की स्वच्छता’ बेहद जरूरी है।