टूटे न हमारा राब्ता, रिश्तों की परवाह कीजिए।
मंजिल मिल ही जायेगी,रास्तों की परवाह कीजिए।
इस मुश्किल घडी में,दवा भी जरुरी है,दुआ भी,
कर लेंगे पार दरिया, हौसलों की परवाह कीजिए।
अब तो मान जाओ दोस्तों,न काटो हरे भरे शज़र,
सहेज लो कुदरत को,परिंदों की परवाह कीजिए।
जो है आज साथ हमारे,दोस्तों वो कल हो न हो,
न रुठों यारों से बेवजह,दोस्तों की परवाह कीजिए।
मीठी यादों के दरीचों पे खिला, जिंदगी के गुलाब,
जो देखे थे हम ने उन ख्वाबों की परवाह कीजिए।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”