कविता

मुझमें चन्दन की महक भरी

मुझमें चन्दन की  महक भरी,
अपनापन तुम  में  गाँवों का।
मैं मधुर गीतिका तरल-सरल,
विस्तार लिए तुम  भावों का।
तुम चोटी हो  उदयाचल  की,
मैं उस पर बिखरी  अरुणाई।
तुम  आशाओं  के  सूरज  हो,
मैं   महकी-  बहकी   पुरवाई।
मैं   मधुर  वल्लरी  हरी- भरी,
तुम   लगते  हो  तरुवर  जैसे,
मैं प्यासी मीन जनम भर की,
तुम आश्रय हो  सरवर  जैसे।
मैं   सरिता  की  जलधारा  हूँ,
मेरे   तुम  सरस  किनारे  हो।
मैं   तुम  पर  वारी   रहती  हूँ,
तुम भी तो मुझ  पर  वारे हो।

— डॉ. प्रवीणा दीक्षित

डॉ. प्रवीणा दीक्षित

वरिष्ठ गीतकार कवयित्री व शिक्षिका, स्वतंत्र लेखिका व स्तम्भकार, जनपद-कासगंज, उत्तर-प्रदेश