पाल की खाल (वार्त्तालाप)
…. तो धर्मविहीन समाज के निर्माण में सादर सहयोग करें ! आप कैसे कवि हैं भाई ! ‘मुक्तिबोध’ को नहीं समझ पा रहे हैं ? हमें लगता है, आप ‘पर….भाष’ बुद्धिजीवी भी नहीं हैं ! क्यों ? श्रीमान प्रभाष ! यह कहकर आप ‘अहं’ का परिचय दिया हैं ! आपने क्या किया है अबतक ? जो उद्धरण बनाऊं ! फ़ख़्त, नील बटा सन्नाटा !
पाल यह कहकर प्रभाष की ओर टकटकी लगाकर देखने लग गए।
क्या-क्या लिखते हो जी ! प्रवचन तो आप झाड़ते हैं ! कभी आप, तो कभी तुम ! आपका दर्शन आपको सलामत ! बचकाना या बच काना ! जैसा कि आपने अभी-अभी सिखाए, जी ! आप समीज पहन लो ! मुँह कब से मियाँ हो गया जी, जो सुगर पेशेंट हो गया !
प्रभाष के कहने के बाद पाल भी भाषण झाड़ने लग गए !
जय हो, भय हो, क्षय हो…. आज दिन भी मंगल है जी और हम दोनों कुतर्कों के दंगल में हैं जी ! हा-हा-हा ! भाई, बाल की खाल नहीं, पाल की खाल …. जो ब्लैक है…. हा-हा-हा…. भाई, don’t another mind !