आँचलिक कथाकार हिमांशु जोशी
हालांकि आंचलिक शब्दों का प्रयोग रामवृक्ष बेनीपुरी, शिवपूजन सहाय, शैलेश मटियानी, हिमांशु जोशी जैसे साहित्यकार ने भी किये हैं, किन्तु बिहार के अररिया जिलेवासी फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ ने ‘मैला आँचल’ में जिस भाँति से मूल हिंदी के साथ-साथ अंगिका, मैथिली, बांग्ला और मधेसी भाषा को पिरोया है, वो विश्व इतिहास में अनोखा है। आज आस्ट्रेलिया के एक यूनिवर्सिटी में ‘मैला आँचल’ पढ़ाया जाता है। यह हिंदी, अंचल-भाषा और देशभर के लिए अनुपम उपहार है।
भारत सरकार कथाकार रेणु जी पर डाक-टिकट जारी करने जा रही है। यह अपने क्षेत्र के लिए गौरव की बात है । कभी ‘बनफूल’ पर भी डाक-टिकट जारी हुई थी । इसीतरह बिहार के प्रेमचंद कहा जाने वाले कटिहार के अनूपलाल मंडल पर भी ऐसा डाक-टिकट जारी हो।
आंचलिक कथाकार हिमांशु जोशी का निधन अप्रैल 2021 में हो गया।
‘अमर उजाला’ के अनुसार- हिंदी के अप्रतिम कथाकार और पत्रकार हिमांशु जोशी का निधन दिल्ली में 83 वर्ष की आयु में 15 अप्रैल 2021 को हो गया। हिमांशु जोशी लंबे समय से बीमार थे। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है। हिमांशु जोशी जी का जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के जोस्यूडा गांव में 4 मई 1935 में हुआ था। वर्षों से लेखन में सक्रिय हिंदी के अग्रणी कथाकार हिमांशु जोशी कोलकाता से प्रकाशित प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका ‘वागर्थ’ के संपादक भी रहे।
उनके चले जाने से साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति हुई है। हिमांशु जोशी के ‘अरण्य’, ‘महासागर’, ‘छाया मत छूना मन’, ‘कगार की आग’, ‘समय साक्षी है’, ‘तुम्हारे लिए’, जैसे प्रमुख उपन्यास अब तक प्रकाशित हो चुके हैं।
इसके अलावा कई कहानी संग्रह, कविता संग्रह, यात्रा वृत्तांत और वैचारिक संस्मरण भी प्रकाशित हो चुके हैं। उनके अनेक उपन्यासों और कहानियों का पंजाबी, डोंगरी, उर्दू, गुजराती, मराठी, कोंकणी, तमिल तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, उड़िया, बांगला, असमी के अलावा अंग्रेज़ी, नेपाली, बर्मी, चीनी, जापानी, इताल्वी, बल्गेरियाई, दक्षिण कोरियाई, नॉर्वेजियन, स्लाव, चेक इत्यादि भाषाओं में अनुवाद भी हुए।
‘छाया मत छूना मन’, ‘मनुष्य चिह्न’, ‘श्रेष्ठ आंचलिक कहानियां’ तथा ‘गंधर्व-गाथा’ को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से पुरस्कार। ‘हिमांशु जोशी की कहानियां’ तथा ‘भारत रत्न: पं. गोबिन्द बल्लभ पन्त’ को हिन्दी अकादमी, दिल्ली का सम्मान।
‘तीन तारे’ राजभाषा विभाग, बिहार द्वारा पुरस्कृत। पत्रकारिता के लिए केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा ‘स्व. गणेश शंकर विद्यार्थी’ पुरस्कार से सम्मानित। कहानियों में ‘अंतत:’, ‘मनुष्य चिह्न’, ‘जलते हुए डैने’, तपस्या, गंधर्व कथा, ‘श्रेष्ठ प्रेम कहानियां’, ‘इस बार फिर बर्फ गिरी तो’, ‘नंगे पांवों के निशान’, ‘दस कहानियां’ प्रमुख हैं।
अग्नि-सम्भव, नील नदी का वृक्ष, एक आँख की कविता में उनकी कविताओं के संकलन हैं। तीस से अधिक शोधार्थियों ने हिमांशु जोशी के साहित्य पर शोध कर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। कई विश्वविद्यालयों में उनकी रचनाएँ पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाती हैं।