ग़ज़ल
पीड़ित मानवता पर कितने वार करोगे कोरोना?
इस रण में तुम कब अपने हथियार धरोगे कोरोना?
इस रण में तुम कब अपने हथियार धरोगे कोरोना?
लाखों लोगों के प्राणों को चट करके भी भूखे हो,
जाने और अभी कितनों के प्राण हरोगे कोरोना?
दुष्ट आत्माओं के जैसे देहों में घुस जाते हो,
किस ओझा के तंत्र-मंत्र को देख डरोगे कोरोना?
जो भी आता है इस जग में, उसको जाना होता है,
रक्तबीज हो पर तुम भी इक रोज मरोगे कोरोना।
वायरसों के हर हमले का तोड़ ढूँढ ही लेंगे हम,
देखें कब तक डटे रहोगे, नहीं टरोगे कोरोना?
— बृज राज किशोर ‘राहगीर’