कविता
जीवन को घेरती हमेशा बारहमासी चिंताएं
तन मन धन की चिंता तो साथ चलती
अब पर वायरस करोना कर दिया मिथ्याए
अपनी मांगो को सुनते सब चीखते दरबदर
हर समय रहती पहाड़ सी बन हासी व्यथाए.
बात– बात पर लोग न जाने क्यों रूठने पर
छोटी छोटी मुसीबतों से हारकर टूटने कथाए .
क्या खुदा पर से अब विश्वास हट गया है ?
या फिर हम खुद को पहचानना भूल मिथाए.
कभी सोंचता कि अबूझ पहेली क्यों ज़िन्दगी
कभी इस बुद्धू मन को उम्मीदों से भर कथाएँ .
पल पल में खिलती मिलती लडती सी बंदगी
जीवन को घेरती हमेशा बारहमासी चिंताएं
-– रेखा मोहन