कहानी

कहानी -एक दूसरे पर ठीकरा फोड़

अरे सुनीता कब से तैयार हो रही हो ?अब तो जल्दी चलो। खाने का समय भी हो गया। ज्यादा भीड़-भाड़ नही होगी, अभी आराम से खा लेंगे । हाँ हाँ आती हूँ। तुम्हे तो बस खाने की पड़ी है व्यवहार भी तो निभाना पड़ेगा ।सीधे खाकर तो नहीं आ सकते हैं ।सुनीता के तेवर तीखे हो गये थे।
तुम मर्द जात एसे ही होते हो सिर्फ अपने मतलब से रिश्ता रखते हो ।अब भाषण मत सुनाओ जल्दी निकलो ।अरे मास्क तो लगा लो ।समीर ने कहा- अरे ;साड़ी के कलर का तो है ही नही, थोड़ा मिलता जुलता हो तो लगा लेती ।सुनीता ने अपनी साड़ी को निहारते हुये कहा।समीर गुस्से में बाहर निकल गया सुनीता ने थोडी देर के लिए अपना मास्क लगा लिया पर ,शादी में निकाल दिया था ।उसे लगा कि वो अच्छी नही लग रही है। इस तरह वहाँ पर आधी से ज्यादा महिलाएँ यही सोच कर मास्क हटा रही थी कि ,फलानी ने तो पहना नही। धीरे -धीरे सभी लोग अपना व्यवहार निभा कर आ चुके थे । सुनीता और समीर भी ।दुसरे दिन सुनीता को हल्की सी सर्दी लगी तो उसने अपना घर पर ही इलाज शुरु कर लिया। पर धीरे-धीरे बीमारी बड़ती जा रही थी ,आखिर में समीर ने उसे चिल्लाकर कहा “अब व्यवहार वाले आयेंगे निभाने” लाख मना किया था ,फोन पर बधाई देदें ।पर नही मानी, बुरा लगेगा उन लोगों को बस। हमेशा उल्टा ही करती हो। अब बस भी करो ,जरूरी नहीं है कि वहाँ जाकर ही बीमार हुई हूँ ।कितने लोग गये थे क्या सब बीमार हो गये ? आपको तो मुझे ताना सुनाने की आदत पड़ गई है । समीर ने अपनी पत्नी का इलाज कराने के लिए अस्पताल में भर्ती कराया दिया ।लेकिन ये क्या वहां पर जगह नही मिली। समीर ने बहुत निवेदन किया लेकिन उसे अपनी बीमार पत्नी सहित बाहर कर दिया गया। अब समीर के पास एक ही चारा था कि, प्रायवेट अस्पताल में भर्ती करा दें। मन ही मन वो सरकारी अस्पताल के लोगों को कोस रहा था। प्रायवेट में भर्ती के लिये भी उसे काफी मस्क्कत करनी पड़ी ।और लाखों रुपये देने के बाद भी सुनीता की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। आखिर जब डॉक्टर साहब ने भी उसे घर ले जाना का बोल दिया क्युंकि अब समीर के पास कुछ नही बचा था अपनी पत्नी को जैसे तैसे घर लाने के लिए मिन्नते की तब डॉक्टर ने अनुमति दी। सुनीता अपने घर पहुंच कर काफी रिलिक्स महसूस कर रही थी उसे अपनी गलती का अहसास हुआ और अपने पति की भी बहुत दया आई। उसने सोचा कि मैने हमेशा अपनी गलती का ठीकरा अपने पति पर फोड़ा और मेरे पति ने मुझ पर। फिर हमने अस्पताल के कर्मचारी पर फिर प्रायवेट के कर्मचारी ने सरकारी पर फिर समाज ने एक दुसरे पर और अन्त में देश की जनता ने शासन और शासक पर ।लोग कहते हैं नेता प्रचार कर रहे हैं रैलियां निकाल रहे हैं राम मन्दिर की जगह अस्पताल बनना था जो भी कार्य मे , जैसे बाड़ आना, सुखा होना, अकाल पड़ना ,प्रलय आना सबमें सिर्फ सरकार दोषी हैं जबकि हम सब जानते है कि ये प्रकृति का असन्तुलन है और कोरोना भी शायद प्रकृति का ही असन्तुलन है हम दो चार लोगों की सरकार बनने पर उन्हे ही भगवान समझ लेते हैं जबकि वो भी हमारी तरह इन्सान ही है। वो सिर्फ नियम बनाते हैं लेकिन हम सिर्फ उन नियमों को तोडते हैं जनता ही नही समझती कि जब पहले एक्सीडेंट होते थे तो हेल्मेट जरूरी कर दिया गया अब भी होते हैं क्युंकि हम हेल्मेट केवल दिखाने के लिए लगाते हैं और पुलिस दंड देती है तो उन्हे दोषी मानते हैं क्युंकि वो हमारी सुरक्षा के लिये दंड देती है हमे बहुत शौक है खुद को पिटवाने का समझ नही आता है रैलियों में हम अपने नेता को भगवान मानकर उन्हे पूजने के लिये जाते है क्यूँ ?क्या तुम्हे निमन्त्रण दिया गया था? भीड़ बड़ाने का। जब तक हम नही सुधरेंगे जब तक हम किसी के सर पर ठीकरा फोड़ते रहेंगे जनता से ही कुछ कर्मचारी बनकर निकले लोग बेईमानी करते हैं लोगों को लूटते हैं ।क्या भगवान आकर कहते हैं या कोई नेता आकर कहता है कि तुम लूट लो ?हमने मन्दिरों मस्जिदों के लिये अपनी जान गंवा दी। क्या इतने अस्पताल बनते और उसमे इलाज कर रहे डॉक्टर हमारे आज भगवान नही होते ।अरबों खरबों रुपये मन्दिर मस्जिद मे दिए ।लेकिन किसी ने इतने रुपये अस्पताल मे दिए; फिल्मो के नायक जो हमारी बदौलत हीरो बने क्या रियल लाइफ में इतने सारे करोड़पति हीरो हीरोइन ने देश की गरीब जनता को दान दिए?
ये भी हमारी तरह ही आम इन्सान थे। हमने ही एसे लोगों को इतनी उपर तक पहुंचा दिया ताकि एक दिन नीचे देखने की फुर्सत ही नहीं मिले। फिर वो ही ठीकरा एक दुसरे पर फोड़ना। ये सब सोचते सोचते सुनीता नें आखरी बार अपने गुनाह की माफी अपने पति से मांगी क्युंकि उसे भगवान सिर्फ अपना पति दिखाई दे रहा था ।कोई पत्थर की मुरत नही क्युंकि आज उसे समझ आ गया था भगवान मन्दिरों में नहीं एक दुसरे के मन में इंसानियत रूप में बसते हैं ।इस तरह सुनीता ने अन्तिम साँस ली।

— वीणा चौबे

वीणा चौबे

हरदा जिला हरदा म.प्र.