जल संकट
“सुबह से ट्यूबवेल खराब है,
न ठीक से शौच कर पाया है,
न मुँह धो पाया है,
स्नान की बात दूर !
मिस्त्री नहीं मिल रहे !
सिर्फ़ कलम महान नहीं !”
एक शिक्षक मित्र आये थे, जो इस संबंध में जानकारी रखते थे । खोल-खाल कर देखा, तो उन्होंने बताया- लोहे की पाइप में कहीं लीक है ।
ले लोटा ! अब नई ट्यूबवेल गाड़ने में Rs 5,000 का फेर ! सोहेल जी, जब निराश पे निराश हो जाऊँगा, आपकी याद अवश्य करूँगा ! तब तक कष्ट झेलने दीजिए, जल-संकटीय कष्ट का अलग ही मज़ा है !
“सचमुच में आज
घर में
जल-संकट रहा !
बचपन में मैंने
अपना ‘मूत’ खूब पीया है,
बछिया का भी!
आजकल घर में सत्तू है,
भूख बढ़ने पर
इसी से सान लूँगा ?”
आपने तो याद भी किया और कई हैं, इन बातों को हँसी में टाल देते हैं ! अनेकानेक शुक्रिया ! इनमें लाइक करनेवाली कोई बात ही नहीं है ! हाल-चाल पूछना चाहिए था ! कष्ट में भी स्मरण करने से दुःख ही मिलता है !