देशभक्ति के मुक्तक
(1)
भारत माँ का लाल हूँ,दे सकता हूँ जान।
गाता हूँ मन-प्राण से,मैं इसका यशगान।
आर्यभूमि जगमग धरा,बाँट रही उजियार,
इसकी गरिमा,शान पर,मैं हर पल क़ुर्बान।।
(2)
भगतसिंह,आज़ाद का,अमर सदा बलिदान।
ऐसे पूतों ने रखी,भारत माँ की आन।
जो भारत का कर गए,सचमुच चोखा भाग्य,
ऐसे वीरों ने दिया,हमको नवल विहान।।
(3)
जय-जय भारत देश हो,बढ़े तुम्हारा मान।
सारे जग में श्रेष्ठ है,कदम-कदम उत्थान।
धर्म,नीति,शिक्षा प्रखर,बाँटा सबको ज्ञान,
भारत की अभिवंदना,दमके सूर्य समान।।
(4)
तीन रंग की चूनरी,जननी की पहचान।
हिमगिरि कहता है खड़ा,मैं हूँ तेरी शान।
केसरिया बाना पहन,खड़े हज़ारों वीर,
अधरों पर जयहिंद है,जन-गण-मन का गान।।
(5)
अमर जवाँ इस देश के,भरते हैं हुंकार।
आया जो इस ओर यदि,देंगे उसको मार।
रच डाला इतिहास नव,लेकर कर शमशीर,
दुश्मन का हमने किया,हर युग में संहार।।
भारत माँ का लाल हूँ,दे सकता हूँ जान।
गाता हूँ मन-प्राण से,मैं इसका यशगान।
आर्यभूमि जगमग धरा,बाँट रही उजियार,
इसकी गरिमा,शान पर,मैं हर पल क़ुर्बान।।
(2)
भगतसिंह,आज़ाद का,अमर सदा बलिदान।
ऐसे पूतों ने रखी,भारत माँ की आन।
जो भारत का कर गए,सचमुच चोखा भाग्य,
ऐसे वीरों ने दिया,हमको नवल विहान।।
(3)
जय-जय भारत देश हो,बढ़े तुम्हारा मान।
सारे जग में श्रेष्ठ है,कदम-कदम उत्थान।
धर्म,नीति,शिक्षा प्रखर,बाँटा सबको ज्ञान,
भारत की अभिवंदना,दमके सूर्य समान।।
(4)
तीन रंग की चूनरी,जननी की पहचान।
हिमगिरि कहता है खड़ा,मैं हूँ तेरी शान।
केसरिया बाना पहन,खड़े हज़ारों वीर,
अधरों पर जयहिंद है,जन-गण-मन का गान।।
(5)
अमर जवाँ इस देश के,भरते हैं हुंकार।
आया जो इस ओर यदि,देंगे उसको मार।
रच डाला इतिहास नव,लेकर कर शमशीर,
दुश्मन का हमने किया,हर युग में संहार।।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे