ग़ज़ल
दिखता है बदल सामने इन दिन के बीच
बन रही मजबूरी दबी अपनों के बीच.
जान से अब नहीं बड़ा सौदा मत कर
रास सी जान की हजुरी सपनों के बीच.
एक सलीका बना लिया घटना से सिख
ये बनी जो दुरी कदम नपनो के बीच.
इसलिए हम अमीर है घर अपनों में
गरीब सोचे महल नुमा सपनों के बीच.
फर्क किसने बना लड़ाया अपनों समझा
हो गई ये वतन प्रस्थि तकनो के बीच.
देख दुश्मन ख़ुशी हरारत को मानता
मीत”मैत्री” कही -सुनी नमनो के बीच.
-– रेखा मोहन