मम्मी
माँ
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मेरे मुख की हर भावों को कैसे तुम पढ़ लेती हो |
जो मैं चाहूँ बिन बोले ही तुम पूरी कर देती हो |
जादूगरनी हो मम्मी या तुम हो परियों की रानी,
तूफानों में घर की नैया बोलो कैसे खेती हो ||
मुझे पढ़ाती मुझे लिखाती सपने नये दिखाती हो |
थक जाता हूँ जब मैं तो तुम सर मेरा सहलाती हो |
सभी बलाओं के सम्मुख तुम ढाल की तरह रही खड़ी |
तभी लिया करते हम मम्मी, नाम तुम्हारा घड़ी- घड़ी ||
मम्मी तुम हो देवी जैसी, दिल मंदिर में रहती हो |
सहती हो चुपचाप कष्ट पर , मुख से कभी न कहती हो।
हमें गर्व है तुम पर हे माँ, झुक कर शीश नवाता हूँ।
दो अपना आशीष मुझे मैं, जीवन पथ पर जाता हूँ।