मजदूर हूँ….
नियोजित,
पारा
और अतिथि शिक्षक भी
‘मज़दूर’ हैं..
हर जोर, जुल्म की
टक्कर में
संघर्ष हमारा नारा है..
भारत के
नियोजित शिक्षक एक हो !
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कवि धूमिल जी कहिन-
एक आदमी रोटी बेलता है,
दूसरा आदमी रोटी खाता है;
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है,
न रोटी खाता है,
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है !
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लॉकडाउन में
एक ही जगह रहने से
एक कार्य करने से
काफी सुकून
और शांति मिल रही है,
वो है ‘पादने’ से
हँसिये मत !
आप भी
यह बम फोड़िये !
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मैं श्रमिक परिवार से हूँ,
मेरे परिवार में
सभी श्रमिक हैं !
जहाँ श्रम,
वहाँ शर्म कैसा ?
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दिखने में कैसे भी हों ?
हमें तो सिर्फ़
‘स्वाद’
चाहिए !
यानी यह भी
कि दिखने में कैसे भी हो ?
पुल्लिंगों को तो
सिर्फ़ ‘स्वाद’ चाहिए !
क्यों ?
शर्म करो !
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सरकार के
विविध योजनाओं के
हिसाब-किताब करने
और एमडीएम के
जोड़-पछाड़ के कारण
यहाँ शिक्षक
‘क्लर्क’ बने हुए हैं !
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