गज़ल
चाँदनी खुद में सिमटती जाएगी,
रात रफ्ता-रफ्ता ढलती जाएगी,
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गर्मी-ए-एहसास की लौ तो दिखा,
रिश्तों पे जमी बर्फ गलती जाएगी,
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मोम के मानिंद है हस्ती तेरी,
कतरा-कतरा बस पिघलती जाएगी,
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वक्त रोके से रूका है कब भला,
ये रेत हाथों से फिसलती जाएगी,
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ना थकेगी, ना रूकेगी ये कभी,
ज़िंदगी हर हाल चलती जाएगी,
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जिस तरह हालात बदलेंगे तेरे,
राय दुनिया की बदलती जाएगी,
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रख भरोसा तू खुदा की ज़ात पर,
खुद-ब-खुद मुश्किल सुलझती जाएगी,
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।