कहानी – सॉरी
‘सॉरी’हाँ यही दो शब्दों की मोहताज थी वो और वो था कि कहना ही नहीं चाह रहा था। शायद अहम की दीवार दोनों के मध्य खड़ी हो गई थी।
नीलम को आज अपने मायके में रहते हुए साल गुजर रहा था।दो साल का नन्हा चिंकू अब तीन वर्ष का होने को है। इस बीच एक बार भी प्रशांत ने उसे फोन नहीं किया न ही कोई संदेश भेजा।
नीलम की माँ और भाभी उसे समझातीं-“देखो नीलम, छोटी-छोटी बातों को लेकर अपनी गृहस्थी नहीं उजाड़ते। क्या हुआ अगर प्रशान्त ने तुम्हें सॉरी नहीं कहा।अरे!हमारे समाज में औरतों को ही झुकना पड़ता है। छोड़ो गलती किसी की भी हो तुम ही सॉरी बोल दो। बात खत्म।”
नीलम माँ और भाभी की बात ध्यान पूर्वक सुनती। सोचती कि वो कहाँ ग़लत थी? इतनी छोटी सी गलती पर भला कोई इस तरह व्यवहार करता है? अगर प्रशान्त अनपढ़ गँवार होता तो बात समझ में आती पर वो इतना शिक्षित समझदार इंजीनियर के पद पर कार्यरत है । ऐसा व्यक्ति ऐसे कैसे कर सकता है ? फिर उसने तो जानबूझकर गलती नहीं किया था। वो क्यों झुके?किसलिये?
वह भी कोई अनपढ़ गंवार नहीं है ।वह शासकीय स्कूल में लेक्चरर के पद पर कार्यरत है। किसी पर आश्रित नहीं है। उसे अपने इंजीनियर पति से पैसा नहीं चाहिए। उसे तो अपने पति से प्यार और सम्मान चाहिए। उसे बहुत दुःख होता कि मेरे अपमान पर कोई क्षुब्ध नहीं है।न माँ न पापा न ही भाई- भाभी। सभी को लगता है कि गलती मेरी है और अगर प्रशान्त की गलती भी है तो क्या हुआ ? वह तो पुरुष है। पुरुषों के तो सौ खून माफ़ है हमारे समाज में। वाह रे समाज!
उसने भी हठ पकड़ लिया कि जब तक प्रशान्त उसे सॉरी नहीं कहेगा अपने किये की माफ़ी नहीं मांगेगा वह उसके घर पर उसके साथ नहीं रहेगी। बस फिर क्या था।वह अपना अटैची उठाये मायके आ गई।
अब तो अड़ोस-पड़ोस वाले रोज ही पूछते हैं कि क्या हुआ? नीलम और प्रशान्त का तलाक हो गया क्या।वे लोग बड़े चटखारे लेकर बात का बतंगड़ बनाते। उनकी बातों से नीलम का परिवार बेहद आहत होता ।पता नहीं हमारे समाज में कुछ लोगों को दूसरों के घरों में झांकने की आदत होती है।दूसरों पर कटाक्ष कर ऐसे लोगों को बड़ा आनन्द मिलता है।
आज उसकी बड़ी ननद आईं हुईं थीं। वह मन ही मन प्रसन्न हो गई कि शायद प्रशान्त ने अपनी बहन को भेजा है शायद कोई संदेश हो पर ऐसा कुछ नहीं था।
वह सचमुच प्रशान्त को कितना चाहती है ।यही कारण है कि वह प्रतिदिन प्रशान्त का इंतजार करती है।क्या प्रशान्त भी उसे चाहता है?अगर चाहता होता तो क्या इतने दिनों में एक दिन भी फोन नहीं करता? हाँ, अक्सर प्रशान्त उसके स्कूल के आस -पास दिखाई देता है पर वह उसे देखकर भी अनदेखा कर निकल जाती है।क्या यह प्रशान्त का प्यार नहीं तो फिर क्या है? हाँ, वे दोनों ही एक दूजे को प्यार करते हैं पर ये क्या हुआ ?
अभी वह ऐसे ही सोच में डूबी थी कि उसकी बड़ी ननद ने उसे बड़े स्नेह से पूछा-“कैसी हो नीलम?क्या घर नहीं चलना है?अरे भई, तुम दोनों तो कितने प्रेम से रहते थे।दोनों बहुत खुश थे फिर नन्हा चिंकू भी तुम लोगों की खुशियां बढ़ाने आ गया है।फिर बात क्या है? मुझे तुम बताओ?”
यह सुनकर नीलम के धैर्य का बांध टूट पड़ा।वह सिसक सिसक कर रोने लगी। उसने बताया कि एक दिन प्रशान्त के बॉस और उनके ऑफिस के मित्र उनके घर खाने पर आमंत्रित थे। उसने बड़ी मेहनत से कई तरह के व्यंजन बनाये थे। खाना परोसा गया पर ये क्या सब्जी की किसी कटोरी में बाल पड़ा किसी को दिख गया ।फिर क्या था प्रशान्त के मित्रों ने खूब हंसी उड़ाई और किसी ने सब्जी नहीं खाई।अभी यह घटना हुआ ही था कि एक बड़ी घटना घट गई ।नीलम बॉस को दाल परोस रही थी कि दाल की कटोरी फिसल कर बॉस के कपड़ो में जा गिरी। नीलम ने हाथ जोड़कर तत्काल बॉस से क्षमा मांग ली।
इस तरह की अप्रत्याशित घटना से प्रशान्त बौखला गये। उनके बॉस सहज लग रहे थे परंतु प्रशान्त मुझ पर बरस पड़े और उन सबके सामने ही मेरे गाल पर थप्पड़ जड़ते हुए कहा,”कैसी बेहूदा औरत हो? एक काम ढंग से नहीं कर सकती।”
मुझे उस थप्पड़ से ज्यादा दिल पर चोट पहुंची।मेँ अपने इस अपमान से स्तब्ध रह गई।
यह सब देख -सुनकर प्रशान्त के मित्र तत्काल खाना छोड़ कर चले गए।
मेँ रोती रही।मैंने प्रशान्त से कहा,”प्रशांत, तुमसे मुझे ऐसे व्यवहार की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी।तुमने एक छोटी सी गलती पर सब के सामने थप्पड़ मार कर मुझे अपमानित किया। “
मेरे इस कथन पर प्रशान्त ने क्रोधित स्वर से कहा,”अच्छा यह गलती नहीं है? जब तुम्हें पता था कि मेरे बॉस घर पर आ रहे हैं तब तुम थोड़ी सावधानी नहीं बरत सकती थी? तुम्हें पता है न इस साल मेरा प्रमोशन ड्यू है। फिर बात पर बात बढ़ती गई। मैंने प्रशान्त से कहा,”जब तक तुम अपनी इस गलती के लिए मुझे सॉरी नहीं कहोगे मेँ तुम्हारे साथ नहीं रहूँगी।”
बस प्रशान्त ने भी गुस्से में सॉरी नहीं बोलने की जिद पकड़ ली। बस दीदी, तब से मेँ और प्रशान्त अलग-अलग रह रहे हैं।”
यह सुनकर दीदी ने एक गहरी सांस लिया और नीलम के सर पर हाथ फेरती हुई वहाँ से चली आई।
आज बड़ी दीदी प्रशान्त के घर पर आईं थीं। प्रशान्त के अस्त-व्यस्त घर को देखकर वह कुछ भी नहीं बोलीं पर प्रशान्त समझ गया। वह दीदी से आँखें चुराते फिरता रहा।
दीदी ने रसोई में जाकर भोजन बनाया और प्रशांत को भोजन परोसने लगी पर यह क्या दाल में तो बाल पड़ा हुआ दिखा। प्रशान्त ने चुपचाप दाल की कटोरी से बाल निकाल कर कटोरी सरका दी। अभी दीदी सब्जी परोस रही थी कि सब्जी का डोंगा अचानक फिसल कर प्रशान्त के ऊपर जा गिरा। प्रशान्त की नई शर्ट पूरी तरह ख़राब हो चुकी थी।
दीदी अफ़सोस जताती हुई कह रही थी,”सॉरी भाई, गलती से फिसल गई ।”
तभी प्रशान्त को नीलम का सॉरी बोलता हुआ चेहरा नजरों के सामने घूम गया। फिर सारी घटना याद आने पर उसे अपनी गलती का एहसास हो गया।
दीदी फर्श पर पड़े सब्जी को साफ करती जा रही थी पर नजर अपने भाई के चेहरे पर थी। प्रशान्त शर्ट बदलता हुआ दीदी से कह रहा था,”दीदी, वाकई कभी-कभी छोटी-छोटी गलतियों को हम लोग राई का पहाड़ बना कर अपनी जिंदगी को दुःखद बना लेते हैं। थैंक्यू दीदी, आज आपने मेरी आँखे खोल दी कि यह गलती किसी से भी अक्सर हो जाती है ।वाकई मुझसे भी भूल हुई की मुझे नीलम से ऐसे व्यवहार नहीं करना था ।मुझे शुरू से इसका अहसास था पर मैं झुकना नहीं चाह रहा था। आज आपने बिना कहे ही मुझे जिंदगी का पाठ पढ़ा दिया है। मेँ नीलम को सॉरी कहने जा रहा हूँ “
उत्तर में दीदी मुस्कुरा पड़ीं।
— डॉ. शैल चन्द्रा