सब संतन्ह की बड़ी बलि हारी
वैशाख पूर्णिमा को महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था और वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को महर्षि मेंहीं का । दोनों की जयंती मनाई गई । ध्यातव्य है, बिहार के मधेपुरा जिले में जन्म, पूर्णिया जिला स्कूल में पढ़ाई, कटिहार जिला के नवाबगंज, मनिहारी को कर्मभूमि बनाये, तो कुप्पाघाट, भागलपुर में ज्ञानप्राप्त करने वाले संत महर्षि मेंहीं को महात्मा बुद्ध का अवतार भी माना जाता है । दोनों संत-महात्मा में कई विशेषताएं समय थी।
सौ साल की उम्र पाकर 1986 में महर्षि मेंहीं महापरिनिर्वाण को प्राप्त किये । इनकी उल्लेखनीय आध्यात्मिक-पुस्तकों में ‘सत्संग-योग’ की चर्चा चहुँओर है, यह चार भागों में है । महात्मा बुद्ध की रचना ‘धम्मपद’ भाँति ‘सत्संग योग’ का भी बड़े नाम हैं । बीसवीं सदी के संत महर्षि मेंहीं की चर्चा महात्मा गांधी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, संत विनोबा भावे, आचार्य शिवपूजन सहाय, मदर टेरेसा, डॉ. रामधारी सिंह दिनकर इत्यादि सहित पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी किए है।
ऐसे महान संत की जन्म-जयंती पर बिहार के मात्र 5-6 जिले के सत्संग प्रेमी ही इन्हें याद करते हैं। इनकी महत्ता को हमारे युवा पीढ़ी जान सके, इसके लिए बिहार सरकार को इनके बारे में पाठ्य पुस्तकों में चर्चा करनी चाहिए, ताकि महान पुरुष की महत्ता से युवा पीढ़ी अनभिज्ञ न रह सके ! तभी तो- कोई भी ‘संत’ स्थान, धर्म और काल विशेष से परे होते हैं, बावजूद बिहार, झारखंड आदि राज्यों व नेपाल, जापान आदि देशों में लोकप्रिय संत महर्षि मेंहीं और उनके आध्यात्मिक-प्रवचन से भारत के राष्ट्रपति डॉ. शर्मा, प्रधानमन्त्री श्री वाजपेयी सहित कई राज्यो के राज्यपाल, मुख्यमंत्री , नेपाल के महाराजा सहित अनेक व्यक्ति प्रभावित हुए हैं । संत टेरेसा और बिनोवा भावे उनसे खासे प्रभावित थे।
‘सत्संग-योग’ पुस्तक उनकी अनुकरणीय कृति है। जिसतरह से भगवान बुद्ध के लिए बौद्धगया महत्वपूर्ण रहा है, उसी भाँति महर्षि मेंहीं के लिए कुप्पाघाट, भागलपुर महत्वपूर्ण स्थल है । प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु इस स्थल के दर्शन करने आते हैं। मैंने विगत सितम्बर में इस संत को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ प्रदानार्थ आधिकारिक ‘प्रार्थना-पत्र’ गृह मंत्रालय, भारत सरकार को भेजा है। इस समाचार पत्र के माध्यम से पाठकों से अपील है, वे सब इस मुहिम को मंजिल तक पहुँचाए।