कविता

नशा

धीरे-धीरे बना जहर, मानव को डसता जाता है
यह नशा बना अभिशाप, जीवन को निगलता जाता है
जब ले लेता आगोश में ये ,कुछ होश रहा ना जीवन का
भूली सारी जिम्मेदारी, करता विनाश यह तन मन का
यह नशा क्षीण करता जीवन, घर को करता है कलह  पूर्ण
दीमक के जैसे लकड़ी को ,करता जाता पल-पल  छिन छिन
घून के जैसे  लग जाए तो, कर दे जीवन को नष्ट भ्रष्ट
चहूं ओर कराए बदनामी, कर देता है यह पथभ्रष्ट
जिसको लग गई है लत गंदी, उसको समाज का भय ना रहा
नाली में गिरे या सड़कों पर, मरने जीने का डर ना रहा
लेकर आगोश में युवा वर्ग को, पतन की राहें दिखा रहा
जो करते घर को  कलहपूर्ण, मदिरालय को जो सजा रहा
“रीत” कहे सुन युवा वर्ग, सद् बुद्धि लाओ जीवन में
ना नशा को हावी होने दो, करो  तिरस्कार  इसे जीवन में
— रीता तिवारी “रीत”

रीता तिवारी "रीत"

शिक्षा : एमए समाजशास्त्र, बी एड ,सीटीईटी उत्तीर्ण संप्रति: अध्यापिका, स्वतंत्र लेखिका एवं कवयित्री मऊ, उत्तर प्रदेश