प्रकृति का संदेश
मैं जब भी सोचता हूँ
कि अपनी कविताओं में
प्रकृति का चित्रण करूँ-
दूषित पर्यावरण के कारण
कुछ स्पष्ट नज़र नहीं आता है.
वहां एक विशाल वटवृक्ष पर
अक्सर काले-पीले पक्षी
टुपटुप बातें करते थे,
जिसे काटकर/ कंक्रीट की
दीवारें खड़ी कर दी गईं.
विनाश की ओर अग्रसर
मानव जाति ने
हवा में ऐसा ज़हर घोल दिया
कि सांसें लेते हुए भी
डर लगता है.
तब मेरी लेखनी –
तेजी से बदलते संदर्भों में
निरंतर खो रहे शब्दों के
अर्थ तलाशती है.
वैश्विक महामारी से प्रकृति ने
नादान इंसान को
शायद फिर संदेश दिया है,
कि जीवनदायिनी हवा में
सांस लेने के लिए जरूरी है-
पर्यावरण की सुरक्षा के साथ
मानवीय मूल्यों का पालन,
स्वच्छता के प्रति सजगता
और जल का संरक्षण,
क्योंकि –
प्रकृति की मुस्कान में ही
सृष्टि है….जीवन है….
— विनोद प्रसाद