गीत/नवगीत

फिर से वही सवेरा होगा

अभी रात का  घना अंधेरा
फिर तो वहीं सबेरा होगा
झूमेंगे फिर वृक्ष हवा में
 पंछी का वही  बसेरा होगा ।
नाचेंगी भीतर, फिर खुशियां
हसरत मौज मनाएगी
उपवन मे फिर फूल खिलेंगे
हरियाली मुस्कायेगी।
 पनघट मे छलकेगी गगरी
पनिहारन का डेरा  होगा।
अभी रात का घना अंधेरा
 फिर से वही सवेरा होगा।
 जिस्म जले या  तपन बढे
हंसते-हंसते सह लेंगे
टूटेंगे ना भीतर से हम
विपरीत दिशा में बह लेंगे
शीतलता को देने वाला
वो बरगद तो  मेरा होगा ।
अभी रात का घना अंधेरा
फिर तो वहीं  सबेरा होगा।
चाहे जितनी  विपदा आए
हिम्मत से हम लड़ लेंगे
नये लक्ष्य और नई खुशी की
राहें सौ- सौ गढ लेंगे
छट जाएगी सारी मुश्किल
मुस्कानो का डेरा होगा
अभी रात का घना अंधेरा
फिर तो वहीं सबेरा होगा।
— सतीश उपाध्याय

सतीश उपाध्याय

उम्र 62 वर्ष (2021 में) नवसाक्षर साहित्य माला ऋचा प्रकाशन दिल्ली द्वारा एवं नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा दो पुस्तकों का प्रकाशन कृष्णा उपाध्याय सेनानी कुटी वार्ड नं 10 मनेंद्रगढ़, कोरिया छत्तीसगढ़ मो. 93000-91563 ईमेल- [email protected]