फिर से वही सवेरा होगा
अभी रात का घना अंधेरा
फिर तो वहीं सबेरा होगा
झूमेंगे फिर वृक्ष हवा में
पंछी का वही बसेरा होगा ।
नाचेंगी भीतर, फिर खुशियां
हसरत मौज मनाएगी
उपवन मे फिर फूल खिलेंगे
हरियाली मुस्कायेगी।
पनघट मे छलकेगी गगरी
पनिहारन का डेरा होगा।
अभी रात का घना अंधेरा
फिर से वही सवेरा होगा।
जिस्म जले या तपन बढे
हंसते-हंसते सह लेंगे
टूटेंगे ना भीतर से हम
विपरीत दिशा में बह लेंगे
शीतलता को देने वाला
वो बरगद तो मेरा होगा ।
अभी रात का घना अंधेरा
फिर तो वहीं सबेरा होगा।
चाहे जितनी विपदा आए
हिम्मत से हम लड़ लेंगे
नये लक्ष्य और नई खुशी की
राहें सौ- सौ गढ लेंगे
छट जाएगी सारी मुश्किल
मुस्कानो का डेरा होगा
अभी रात का घना अंधेरा
फिर तो वहीं सबेरा होगा।
— सतीश उपाध्याय