वक्त हिसाब मांगता है
हमसे हर बात का हिसाब मांगता है
हमारे हर कर्म का जबाव मांगता है।
अहंकार के वंश में आकर हमने जो गुनाह किए
वो कर्मों-गुनाह हमसे जबाव मांगता है।
प्रगति के नाम पे क्षतिग्रस्त करते रहे जिस प्रकृति को
प्रकृति उस क्षति का हमसे भुगतान मांगता है।
भौतिकता में अंधे होकर हमने जो प्रपंच रचा
आज जिंदगी रो-रो कर हर बात का जबाव मांगता है।
नदियां पर्वत हवा पेड़ मिट्टी का हमने जो दोहन किया
आज मिट्टी हमसे उस बात का प्रतिदान मांगता है।
— विभा कुमारी “नीरजा”