माँ और ममता
अस्तित्व और पहचान विहीन,
हमारे निर्माण की सूत्रधार
माँ ही तो है,
बस। एक ख्वाब और हमारा निर्माण
बिना किसी स्वार्थ, भ्रम और भय के
एक सतत साधना शुरु।
गर्भ में रोपित करती हमें
शून्य से लेकर सौ तक पहुँचाती
क्या क्या सपने सजाती,
अनेकानेक दूश्वारियां हँसकर सहती
अनदेखी हमारी प्रतिमूर्ति की
कल्पनाओं में सपनों की उड़ान भरती
हमारे बढते बोझ को
हँसते हँसते सहती
फिर भी कितना खुश होती,
हमारी हिफाजत बिना देखे भी
दिन रात करती।
हमें संसार में लाने के लिए
क्या कुछ नहीं सहती?
फिर भी मुस्काती रहती।
अनदेखे अंजाने हमारे स्वरूप की
कल्पनाओं में डूबी
सिर्फ़ हमारा ध्यान करती,
हमें साकार रुप में देखने/पाने के
अनगिनत सपने सजाती,
मन ही मन उत्साहित होती
भाव विभोर होती रहती।
जान जोखिम में डालती
हमें संसार में लाने के लिए
क्या क्या नहीं सहती?
फिर भी अपनी फिक्र नहीं करती,
नौ माह की कठिन तपस्या
हमें जन्म देकर फलीभूत करती,
ऐसी ही होती माँ और
माँ की निश्छल ममता।
जिसकी कोई बराबरी नहीं
माँ का दुनिया में कोई सानी नहीं,
ईश्वर भी माँ के आगे बौना है
माँ के बिना दुनिया का होना नहीं।
माँ और उसकी ममता का
कोई विकल्प ही नहीं
माँ के बिना सृष्टि का
कोई अस्तित्व ही नहीं ।