जीना सीख लिया
दिल का दर्द छिपाकर विरही,
जिसने जीना सीख लिया।
उनको नमन हमारा जिसने,
आँसू पीना सीख लिया।
हार न मानी थके नहीं जो,
चलने का संकल्प लिया।
तोड़ वर्जनाओं को जिसने,
जय का सिर्फ विकल्प दिया।
बने वही तारीख जहाँ में,
लक्ष्मण रेखा खींच दिया।
लक्ष्य साधने में जो तन्मय,
बाधाएं जिनसे हारीं।
बढ़ते गये अहर्निश मग में,
मिली उन्हें मंजिल प्यारी।
तन-मन-धन दे धुन का अंकुर,
साहस से जो सींच दिया।
गिरि के शिखर लहर सागर की,
जिनकी राह न रोक सकी।
दकियानूसी सोच जगत की,
कभी न जिनको टोक सकी।
आस-भरोस की चादर अपनी,
जिसने सीना सीख लिया।
— वीरेन्द्र कुमार मिश्र ‘विरही’