माँ के नाम से गाली बकनेवाले ‘कलंकित’ लोग
सभी स्वार्थी हैं,
अन्यथा सिर्फ़
घर्षण के लिए शादी
और अपने ही वीर्य के
बच्चे क्यों चाहिए हमें ?
‘गोद’ लेकर अनाथ बच्चों का
जनसंख्या कम कीजिए !
गाँवों ही नहीं,
शहरों के दबंग
और नेतानुमा लोग
‘माँ’ के नाम पर
गाली बकते हैं,
जैसे- मादर..
उस जैसे लोग
‘मदर्स डे’ के लिए
कलंक हैं !
जो बेटे माँ से
अलग रहते हैं,
जो पतोहू सासु माँ से
अलग रहती हैं,
वे ‘मदर डे’ नहीं,
‘मर्डर डे’ मना रहे होंगे !
नियोजित शिक्षक
बुलेट पर चलेंगे,
उनके बच्चे
प्राइवेट स्कूल में पढ़ेंगे
यानी गरीबी दिखती नहीं !
फिर माननीय कोर्ट
दोषी कहाँ ?