मातु मिठाई
मां की भी क्या बात चलाई
जीवन की है मात मिठाई
फीके फीके मां बिन सुख हैं
दुख की धूप में मात छांही
बडे़ अभागे मां को त्यागें
भाग्य, पुण्य पूंजी ,गंवाई
मां के चरणों में जो बैठें
जीत लेते सारी खुदाई
छीने जो काल मां की देही
बातों में वो रहे समाई
इस दुनिया का भाव नहीं वो
प्रभू की करुणा मांं बन आई
— सुनीता द्विवेदी