कवि और कविता
कवि और कविता का
तालमेल जरूर है,
परंतु कोई फार्मूला नहीं है।
शैक्षणिक योग्यताओं का
इसमें को विशेष रोल नहीं है,
जाति,धर्म, महजब या
उम्र का भेद नहीं है।
बस!मन में उमड़ते घुमड़ते
विचारों को शब्दों की माला में
पिरोने की कला ही तो
कवि होने का भान कराती है,
आम लोगों के मन को
वही शब्दों की माला भा जाये
तो कविता कहलाती है।
कवि भावों को शब्द देता
सलीके से सजाता,
कवि के इसी शब्द श्रृंगार से
कविता में निखार आता है,
उसी कविता के सहारे
कवि मान सम्मान
पहचान पाता है,
इसी भरोसे से ही तो
कवि और कविता का
अटूट प्रणय बंधन बन जाता है।
कवि के बिना कविता का
और कविता के बिना कवि का
भला अस्तित्व कहाँ बच पाता।