खुशियां आईं द्वार
विश्वनाथ घर में अकेले ही रहते हैं । बच्चे विदेश में अपनी ही दुनिया में मग्न । विश्वनाथ ने घर के पिछले हिस्से में कई तरह के फलदार पेड़ लगा रखे है । विश्व नाथ सुबह सुबह नित्य एक घंटे बगिया में काम करते हैं उनकी मेंहनत रंग लाई , इस बार आम का पेड़ केरियों से लद गया था । झुग्गियों में रहने वाले मोहित और राधिका कचरा बीनते हुए जब विश्वनाथ के घर के पिछवाड़े मैं लगे आम के पेड़ की छांव में सुस्ताने बैठ गए उनका ऊपर ध्यान गया कच्ची केरियों को देखकर राधिका का मन अमियां देख ललचा उठा मोहित ! मुझे एक आम तोड़ दो ।
नहीं , पगली किसी से बिना पूछे फल नहीं लेते , तू तो ऐसे कह रहा है जैसे पूछने से तुझे तोड़ने देंगे ।
इतना ही खाना जरुरी है तो खरीद कर क्यों नहीं खाती । मोहित मैं तुझे धन्ना सेठ नजर आती हूं इतना कमा लेती तो दुकान से बढ़िया कपड़े ना खरीद लेती । कबाड उठा उठा कर कमर दोहरी हो जाती तब कहीं दस बीस रुपए हाथ आते हैं । उनको भी माँ को देना पड़ता है ।तब कहीं मेरे घर चूल्हा जलता है ।
राधिका मेरा भी तो यही हाल है, वर्ना कसम से खरीद कर खिला देता तुझे कच्ची केरी ।
चल चल तू तो रहने ही दे तुझसे ना हो पायेगा में ही कुछ करती हूँ। राधिका ने इधर उधर नजर दोडाई एक लकड़ी दूर पड़ी हुई दिखाई दी उसे उठा कर ले आई निशाना साध कर लकड़ी फेंकी पर लकडी नीचे ही रह गई केरी तक पहुंच ही नहीं पाई ।
राधिका मुंह फुलाकर बोरा कंधे पर उठा कर चल दी ।
ओ हो ! राधिका कहाँ चल दी ,
जहन्नुम में
रुको ! जरा मैं भी आ रहा हूँ
ओहो , तुम भी ……ना भई तुम मेरे पीछे मत आओ ।
सड़क तुम्हारी नहीं हैं । सभी के लिए बनी है
ओह ! समझी
अब ये इमानदारी की नोंटंकी मेरे सामने मत करना वरना कुट्टी ।
राधा रानी गुस्सा थूक दो चलो मैं तुम्हें उसी पेड़ से केरी तोड़ देता हूं ।
सच में देगा , झूठ तो नहीं बोल रहा ।
चलो ना मिले तब कहना ।
राधिका मुड़ कर फिर पेड़ के नीचे पहुंच गई ।
इस बार मोहित ने डंडा उठा कर केरी पर निशाना साधा जोर से डंडा फेंककर मारा झट से दो कच्चे आम राधिका की झोली में आ गिरे राधिका खुशी से नाच उठी ।
लेकिन मोहित ने तार फेंसिंग से हाथ बढ़ाकर केरी के बदले में पांच का सिक्का पेड़ के नीचे रख एक पर्ची भी रखदी उस पर लिखा मेरे पास यही है आप को देने के लिए मुझे माफ कीजिए । मोहित और राधिका झुग्गियों की तरफ बढ़ गए ।
विश्व नाथ कुछ देर बाद बगिया में आए तो आम के पेड़ के नीचे पाँच का सिक्का और पास ही पत्थर से दबी हुई पर्ची खोल कर पढ़ी गुस्सा आने की बजाय लड़के की खुद्दारी पसंद आई । विश्वनाथ मुस्कुराते हुए अंदर चले गए ।
अगले दिन विश्वनाथ दोपहर में बार बार खिड़की से झांक कर देख रहे थे अब वो लड़का आए और देखे कौन है । लेकिन उस दिन कोई नहीं आया।
अगले दिन विश्वनाथ बगीचे में टहल रहे थे तभी आम के पेड़ पर हलचल हुई तो वे एक पेड़ की आड़ से देखने लगे लड़के ने डंडी मारी और दो आम जमीन पर गिर पड़े लड़की ने दौड़कर उठा लिए और बड़े चाव से खाने लगी लडके ने पाँच का सिक्का और पर्ची हाथ बढ़ा कर पेड़ के नीचे रख दी विश्वनाथ सांस रोककर खड़े यह सब देखते रहे ।जब बच्चे चले गए तो पेड़ के नीचे से पर्ची पढ़ी आज फिर मैंने आपके आम तोड़े हैं क्या करु मेरी राधिका को पसंद है ?
विश्व नाथ सोचने लगे आज से चालिस बरस पहले पिता जी के साथ कानपुर में रहते हैं रेलवे के क्वाटर में पीछे बगीचा था घर रेलवे स्टेशन के पीछे ही बना था तो रेल की पटरियों पर बोतलें कबाड़ बीनने वाले बच्चे घुमते हुए आते और दोपहर में मौका पा कर फल तोड़ लिया करते पिताजी से शिकायत करते तो वह यही कहते खाने की चीज है खाने दो बेचारे खरीद कर तो खा नहीं सकते । मुझे इस बात पर बहुत गुस्सा आता था मैं भुनभुना हुआ पढ़ने बैठ जाता लेकिन मेरा ध्यान अमरूद के पेड़ पर ही रहता अब में निगरानी करने लगा जब भी बच्चों को देखता भगा कर ही दम लेता अब इसमें मुझे मजा आने लगा । पिताजी ने टोका विशू अमरूद पक कर गिरते जा रहे हैं तुम भी इतना खाते नहीं हो बेचारे बच्चों को ही खाने दो लेकिन मुझे तो जिद हो गई कि इन बच्चों को नहीं खाने देना है नतीजन अमरूद पक पककर गिरने लगे और सड़ने लगे । पिताजी ने तुड़वा कर पड़ोसियो को देने के लिए कहा तो मुझे वह भी पसंद नहीं आया हम मेहनत करें और ये मजे से खाएं। पीताजी कहते बेटा बाँटने से खुशियां मिलती है ।
लेकिन मेरी समझ में कुछ नहीं आता मैं गुस्से से पैर पटकता हुआ अंदर चला जाता और फल की टोकरी उठाता और बेमन से सभी पड़ोसियों को बांट आता । आज बच्चों को फल तोड़ता देख मुझे गुस्सा नहीं आया ।
पिछले कुछ दिन तक बच्चे पेड़ के पास दिखाई नहीं दिये मन बेचेंन रहा । इस बीच आम पक गए थे । आज ही माली ने सुबह तोड़ कर रख दिये माली के साथ पड़ोसियों को आम बंटवा दिये कुछ माली काका को दे दिये कुछ आम उन बच्चों के लिए रख लिये ।
माली काका अगर आपको कबाड़ा बीनने वाले एक लड़का और लड़की साथ में दिखाई दे तो उन्हें घर बुला लेना ।
जी साहब ! नज़र आए तो जरूर बुला लेंगे । कह कर निराई गुड़ाई करने लगा ।
राधिका! देख देख लगता है। एक भी आम पैड़ पर नहीं है ।
ईश्श्श्श्श्श् ….वो देख माली काका । देख लेंगें तो पकड़े जायेंगे ….चल जल्दी ।
आवाज़ सुनकर माली ने पीछे मुड़कर देखा दो बच्चे खड़े है ।
“बच्चों यहां आओ”
जी हमने कोई फल नहीं तोड़ा है ।
अरे ! तुम् दोनों को हमारे साहब बुला रहे हैं ।
अंदर आ जाओ ।
“मोहित ! कहीं दाल में कुछ काला है ।”
“राधिका मोहित के कान में फुसफुसाई” राधिका अब चल तो सही जो होगा देखा जायेगा ओखली में सिर दिया है तो डरना क्या ?
मोहित……आज बड़ी कहावतें याद आ रही है ।अगर मार पड़ी ना तो नानी भी याद आ जायेगी ।
मोहित और राधिका डरते हुए माली काका के पीछे-पीछे चल दिये घर में घुसे तो बैठक में एक बुजुर्ग बैठे थे दोने एक साथ कहा दादाजी नमस्ते।
विश्वनाथ ने दोनों को बैठने का इशारा किया ।
राधिका अपने कपड़े समेट कर जमीन पर बैठ गई मोहित अभी भी असमंजस में पड़ा हुआ था।
मोहित …..यही नाम है ना तुम्हारा
जी मेरा नाम मोहित है ।
बैठ जाओ ………..मोहित भी राधिका के पास बैठ गया ।
माली काका इन बच्चों को आम काटकर खाने के लिए दो ।
जी मालिक ……अभी लाया
माली काका प्लेट में आम काटकर ले आए
और बच्चों के सामने प्लेट रख दी ।
बच्चों आम खाओ ….. राधिका मोहित की तरफ देखने लगी । मोहित ने प्लेट से आम का टुकड़ा उठा कर राधिका को दिया दोनों बैठ कर आम खाने लगे विश्व नाथ को आज से पहले ऐसे सुकून का अनुभव नहीं हुआ था । बच्चों को आम खाता देख एक अलग ही खुशी हो रही थी । बच्चों ने आम खत्म कर लिया था माली काका इन बच्चों को घर ले जाने के लिए भी आम दे दो । माली ने आम देकर बच्चों को विदा कर दिया।
जाते हुए बच्चों को देखकर विश्वनाथ हाथ हिलाते रहे। बच्चे बहुत खुश थे।
राधिका आज तो बच गए मार नहीं पड़ी अभी तक तो यही होता था कोई भी हमें चपत लगा देता था ।
राधिका ! आज तो कमाल ही हो गया । कितने अच्छे वाले दादा जी है ।
हां….. मोहित मैं यूं ही डर ही रही थी ।
बच्चों के चले जाने के बाद विश्वनाथ आराम कुर्सी पर बैठकर मुस्कुरा पड़े । पिताजी आप ठीक कहते थे । खुशियां बाँटने से ही खुशी मिलती है ।
— अर्विना