गीत – कोरोना का कहर मानव का कर्म फल
रोती मानवता की राष्ट्र मैं आज चीख सुनाने आई हूँ
भुगत रहा परिणाम करनी का आज बताने आई हूँ
प्रकृति से जो किया कृत्य तूने स्मरण कर हो मानव
विधि के विधान को दे चुनौती बन रहा था तू दानव
भूल गया तू निज धर्म को किया धरा पर नित पाप
काटे तूने निर्दोष वृक्ष जब सुना नही उनका विलाप
जो बोया थ वो पाया है ये बात याद दिलाने आई हूँ
रोती मानवता की राष्ट्र मैं आज चीख सुनाने आई हूँ
विपिन काट बसाया शहर उसी शहर में छाया कहर
सूना सूना है जग सारा तिमिर में विलीन आठोंपहर
अमृत प्रदाती गौ को काट खाया तूने इसे बांट बांट
प्राणवायु पीपल देता उसकी शाखाओं की दिया छांट
नीच कृत्य रहे मानव तेरे ये स्मरण कराने आई हूँ
रोती मानवता की राष्ट्र मैं आज चीख सुनाने आई हूँ
जाग जाग हे मानव जाग मत कर तू यूँ व्यर्थ संताप
करूणानिधि से क्षमा मांग कर ले तू अब पश्चाताप
क्षमा होगें तेरे पाप मन शुद्ध समझ सत्य के ज्ञान को
धर्म विरूद्ध कर्म न होगा दे वचन प्रकृति विधान को
प्रकृति का रोना ही कोरोना ये राज बताने आई हूँ
रोती मानवता की राष्ट्र मैं आज चीख सुनाने आई हूँ
— आरती शर्मा (आरू)