कविता

सीढ़ियां

अपने ख्वाब
पूरे करने हों तो
शाम, दाम, द़ंड ,भेद के साथ
हर हथकंडे भी
स्थिति के अनुसार
अपनाने में कोई हर्ज नहीं है,
ख्वाब साकार हो रहा हो तो
किसी भी हद तक गुजर जाना
या यूँ भी कह लें
किसी की लाश पर तम्बू लगाने में
तनिक भी गुरेज नहीं है।
आपकी तरह मैं बेवकूफ नहीं हूँ,
अपना जमीर जिंदा है
मात्र दिखाने के लिए
अपनी कामयाबी को पीछे ढकेल दूँ
मुझे मंजूर नहीं है।
मेरे ख्वाब जितने ऊँचे
मेरा जमीर उतना ही नीचे है,
आप भी ये जान लें
अपने ख्वाबों को मैंने खून से सींचे हैं,
अपना तो जमीर जिंदा नहीं है यारों
तभी तो कामयाबी की
सीढ़ियां चढ़कर यहां तक
आखिरकार पहुंचे हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921