ग़ज़ल
खिले फूल हमको सुहाने लगेंगे
अगर हम जहाँ से बचाने लगेंगे
ख़ुमारी चढ़ेगी तभी प्यार की तो
खुशी हम जहां में लुटाने लगेंगे
अभी दिलबरी काम आये सुनो तो
उन्हें तो सदा हम सताने लगेंगे
खुशी से मिलें वो इसी राह पर जब
तभी हम क़दम भी बढ़ाने लगेंगे
जहाँ खूं शहीदों का यारो गिरेगा
तो अपना वहीं सिर झुकाने लगेंगे
हमें छोड़ कर तुम बढ़ाना न दूरी
उसी याद में कसमसाने लगेंगे
बना लूँ जो खूं को अगर मै स्याही
फ़साने नये फिर पुराने बनेंगे
बढ़ें मुफ़लिसी में करें कर्म ऐसे
सभी हाथ तब ही बढ़ाने लगेंगे
— रवि रश्मि ‘अनुभूति ‘