गीत
मनुष्य की चिता बने विकार की दवा करो
कृपा करो कृपा निधान दूर आपदा करो।
पुकार कर रही मनुज विहीन हो रही धरा
परमपिता दया करो दया करो दया करो।।
बुझे दिये उजास के तमस विराट हो रहा
दुखी विमूढ़ सा मनुज झुका ललाट रो रहा।
घड़ी घड़ी उमीद के कपाट बंद हो रहे
बिलख रहा कराहता मनुष्य लाश ढ़ो रहा।।
भटक रहे मनुष्य का प्रश्स्त रास्ता करो…
परमपिता दया करो दया करो दया करो…
खुली विचर रही है मौत बंद बंद स्वाँस है
किये बहुत मगर विफ़ल रहा हरिक प्रयास है।
कहीं जली कहीं दफ़न हुई तमाम अर्थियाँ
मनुष्य के तथाकथित विकास का विनाश है।।
विनय सुनो प्रभो तमाम ग़लतियाँ क्षमा करो…
परमपिता दया करो दया करो दया करो…
अधर्म मार्ग हो विलुप्त धर्म का पता मिले
दिशा भ्रमित हुए मनुष्य को सही दिशा मिले
चलो उपासना प्रयंत हम सभी दुआ करें
मनुष्य को हरा रहे विकार की दवा मिले
तुम्हीं से आस शेष है कृपा करो कृपा करो…
परमपिता दया करो दया करो दया करो…
— सतीश बंसल