ग़ज़ल
आज ढांचा बहुत ही जर्जर है।
हर तरफ मौत का यूं मंजर है।
हार पचती नहीं ज़रा सी भी,
उठ रहा हर तरफ बवंडर है।
साथ देगा न अब कोई साथी,
मौत का सामने समन्दर है।
शोर चारों तरफ करोना का,
कौन कहता बड़ा सिकन्दर है।
जां निछावर करें सभी उसपर,
दीन का जो हमीद सरवर र्है।
— हमीद कानपुरी