कविता

जो कहलाए थे महाराणा

जो कहलाए थे महाराणा,
उस प्रताप की हुँकार सुनो।
आज इस चन्दन की ज़ुबानी,
तुम दास्तान-ए-मेवाड़ सुनो।
पिता उदय सिंह द्वितीय,
और माँ जयवंताबाई थी।
कुम्भलगढ़ के किले में जन्में,
तब माटी भी मुस्काई थी।
अधीनता न है स्वीकार,
महाराणा ने ये ठाना था।
वो थे साहसी, कर्मवीर,
ये अकबर ने भी जाना था।
हुआ युद्ध प्रचंड और
लहू से सन गई माटी थी।
जहाँ मुगल भी काँप उठे,
वह भूमि हल्दीघाटी थी।
भील थे इनके साथ और
शत्रु सेना विशाल थी।
इस परमप्रतापी राणा की,
सेना नहीं, मशाल थी।
बहलोल खान को इन्होनें,
बीच से ही चीर दिया।
धन्य है वो माता भी जिसने,
देश को ऐसा वीर दिया।
जब राणा शत्रुओं से घिरे,
चेतक ने उन्हें बचाया था।
28 फीट का नाला भी तब,
कटी टांग से पार लगाया था।
राणा को बचाने में उसने,
अपना दे दिया प्राण था।
वो चेतक, केवल अश्व नहीं,
राणा का मित्र महान था।
आए मुश्किल कितनी भी,
पर माने न कभी हार थे।
दोस्तों के लिए दोस्त और
दुश्मन के लिए तलवार थे।
महाराणा की मृत्यु पर,
मुगल अकबर भी रोया था।
भारत माता भी रो पड़ी,
जब ऐसे वीर को खोया था।
वो महाराणा का शौर्य प्रताप,
वो साहस की निशानी है।
युगों-युगों तक गाई जाएगी,
महाराणा की कहानी है।
— चन्दन केशरी

चन्दन केशरी

झाझा, जमुई (बिहार)