लघुकथा

रौशनदान

पिछले दस दिनों से एक अज़ीब सी बेचैनी में रागिनी जी रही थी । अपनी भाभी की माँ से बहुत गहरा माँ बेटी सा रिश्ता वर्षों पहले बन गया था ।
रिश्ते में दिनोंदिन मधुरता और खान-पान के साथ-साथ तोहफों का आदान-प्रदान भी निरंतर लंबे समय तक जारी रहा ।
जिंदगी और रिश्तों में भी धूप-छांव होती है । यह वक्त की पाठशाला में जरूर पढ़ाई जाती है ।
उसके दोनों बेटे से बेहतर भाभी के भाईयों की शिक्षा हुई ।
यहीं से रिश्तों में मधुरता धूमिल होने लगी आपके बच्चे से ज्यादा पढ़ालिखा और कमाऊ मेरा बच्चा है ।
इस बात को कहने का एक भी अवसर भाभी या भाभी की माँ नहीं गंवाती थी । धीरे-धीरे रिश्तों की मधुरता खो गई ।
रही सही कसर विधाता ने पूरी कर दी । रागनी अपनी माँ की मौत पर बिल्कुल टूट गई ।
सभी रिश्तेदार सांन्त्वना और संवेदनशीलता का परिचय दिये । लेकिन भाभी की माँ उसे एक फोन भी नहीं कीं ।
एक टीस सी उठने लगी उसके मन में । जब अपने सुदर्शन भाई का रिश्ता करवाने में रागिनी अहम भुमिका निभाई थी तो उन लोगों ने भी उसे बेटी समान प्यार दिया था।
बार-बार यही कहते कि बेटी तो दूर चली गई, पर आप हो पास में, तो बेटी की कमी नहीं महसूस होती है ।
वही माँ, खुद उसकी माँ के स्वर्गवासी होने पर एक औपचारिक फोन तक नहीं कीं ।
नियति को शायद उसकी और परीक्षा लेनी थी । दो साल बाद उसकी भी दुनिया उजड़ गई । भाभी के मैके वालों ने दो शब्द भी सहानुभूति वश नहीं कहे ।
उफ्फ क्यों मैं बार-बार पिछली कड़वी बातों को याद करती हूँ । आगे बढ़ने का नाम जिंदगी है । मुझे भूलना ही होगा, ऐसा सोचते हुए बेमन से टीवी ऑन कर देखने लगी ।
बिटिया कब आकर उसके बगल में बैठ गई उसे पता ही नहीं चला ।
“माँ; आप अपने स्वभाव के प्रतिकूल कुछ भी नहीं कर सकती हैं ।
मामी जी का भाई जिंदगी और मौत से लड़ कर महीनों बाद घर वापस आया है । क्या आप उसे बधाई और स्वास्थ्य लाभ हेतु शुभकामनाएं नहीं देंगी ?”
“हाँ; शायद तुम ठीक कहती हो, पर रिश्ता मैंने खराब नहीं किया है,उन्होंने खराब किया है ।
भूल गई जब तेरी नानी और तेरे पापा स्वर्गवासी हुए तो उनलोगों ने फोन पर भी संवेदना तक प्रकट नहीं किये । लगता है मेरा फोन न. भी उन लोगों ने अपने कॉन्टेक्ट लिस्ट से हटा दिया है ।”
“माँ वह सब मैं नहीं जानती, मैं तो बस इतना कहूँगी कि रिश्ता रखो या नहीं रखो, पर उम्मीद के सारे दरवाजे बंद मत करो ।”

बेटी की बातों में इंसानियत महसूस हुई । उसने व्हाट्सएप पर शीघ्रातिशीघ्र स्वस्थ हों एवं स्वस्थ होकर घर वापस आने का बधाई संदेश भेज कर खुद को बहुत हल्का महसूस करने लगी ।
सच में सारे दरवाजे भले ही बंद हो जायें, पर रिश्तों में एक छोटा सा रौशनदान जरूरी है ।
बिटिया के हल्के से प्रयास से रिश्तों का रौशनदान खूल गया ।
— आरती रॉय

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - arti.roy1112@gmail.com