कविता

सुरक्षित रहिए

समय प्रतिकूल है
जीवन के लिए आया शूल है,
ऐसे में हर किसी की
बनती अहम जिम्मेदारी है।
खुद,परिवार और समाज के
अस्तित्व जीवन रक्षा के लिए,
सुरक्षित रहना ही हर एक की
साथ साथ बारी है।
सतर्क, सावधान रहें
सबको जागरूक करते रहें,
दो गज दूर दूर रहें
मनोबल बनाए रहें।
डरें नहीं ,डरायें नहीं
हाथ भी मिलाएं नहीं,
शरीरिक दूरी तो रखिए
मन में दूरी लायें नहीं।
बार बार हाथ धुलें
मुँह, नाक ढके रखें,
बाहर भी घूमें नहीं
खुद पर संयम रखें।
घर पर ही रहिए
सुरक्षित भी रहिए
कोरोना से जंग में
आप भी आधार बनिए।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921