कविता

बेचैन

कहता तू बेचैन मुझे तो जी भर कह ले।
जैसे मिलती हों खुशियाँ वैसे तू रह ले।।
मैं पनघट पर जब भी आया, सूखा पाया।
खाने को अपने हिस्से बस रूखा पाया।।

जब भी उगी चाँदनी तो मैं सोया रहता।
सूरज आता-जाता पर मैं खोया रहता।।
संतापों का डाल बिछौना अक्सर सोया।
उलटी तकदीरों का ओढ़े चादर सोया।।

कोयल मोर पपीहा केवल विरह बढ़ाते।
मन के उजड़े उपवन में पुनि पतझर लाते।
इतने पर भी कहते हो बेचैन, तो कहो।
भाग्यहीन को जब जो चाहो बैन वो कहो।।

कर्मवीर हूँ, कर्म सदा करता जाऊँगा।
नये रास्ते खोज सदा बढ़ता जाऊँगा।
हे लकीर के चिर फकीर, मुझको पहचानो।
भरत-लहू का शौर्य अवध भूलो मत,जानो।।

— डॉ अवधेश कुमार अवध

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 [email protected] शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन