कविता

सिसकियां

हर ओर अफरातफरी है
हर चेहरे पर खौफ है,दहशत है।
घर, परिवार का ही नहीं
बाहर तक फिज़ा में भी
अजीब सी बेचैनी है।
माना सिसकियां भी
सिसकने से अब डर रहीं।
आज सिसकियां भी मानव की
विवशता देख सिसक रहीं।
सिसकियों में भी संवेदनाओं के
स्वर जैसे फूट पड़े है,
मानवों के दुःख को
करीब से महसूस कर रहे हैं।
पर ये भी तो देखो
सिसकियां भी
मानवीय संवेदनाओं से जुड़ रहीं,
हमें नसीहत और हौसला
दोनों दे रहीं,
अपनी हिचकियों के बहाने से हमें
खतरे से आगाह भी कर रहीं।
अक्षर ज्ञान नहीं सिसकियों को
इसीलिए अपने आप में ही
सिसक रहीं अपनी हिचकियों से

संवेदनाओं को व्यक्त कर रहीं।
सुन सको तो सुन लो,
सिसकियां तुमसे क्या कह रहीं?
न हार मानों तुम शत्रु से
न उसे अजेय मानों।
रख मन में पूरी आशा
करो खुद पर भरोसा
कस कर कमर अपनी
प्रयास करो जोर से,
दूर होगी सारी दुश्वारियां
फौलादी चट्टान सी जो हैं
तेरी राह में डटकर खड़ी।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921